बात कुफ्र की की है मैंने....


पेश है एक वार्तालाप

टॉम-उफ...क्या हो गया है देश को
डिक-क्यों क्या हुआ...
टॉम-अरे... अब ऐसे घृणित काम को भी कानूनी मान्यता मिल गई... महिला का महिला और पुरुष का पुरुष के साथ संबंध पर कोर्ट को कोई एतराज नहीं...
डिक-तो इसमें गलत क्या है
टॉम-गलत ही गलत है। ये कुदरत के खिलाफ है। सोचकर ही घिन आती है। यह फैसला शादी, परिवार जैसी व्यवस्था को खत्म कर देगा।
डिक-यह सब पर लागू नहीं होता, बल्कि जो लोग ऐसे हैं उन्हें प्रताड़ना से बचाएगा। इन्हें समझने की बजाए हम घरों में कैद कर देते हैं। पुलिस उनके साथ खराब सुलूक करती है।
टॉम-इन्हें क्या समझना...ये तो बीमार और पागल हैं।
डिक- यह न तो बीमार हैं और न असामान्य। जैसे आप किसी स्त्री को पसंद करते हैं या कोई स्त्री पुरुष को पसंद करती हैं, वैसे यह प्रवृत्ति भी जन्मजात है।
टॉम-सब बकवास है। इनका तो इलाज होना चाहिए, न कि इन्हें अधिकार दिए जाने चाहिए। इन्हें बढ़ावा क्यों दे रहे हैं?
डिक-नहीं, यह कोई छूत की बीमारी नहीं है, जो दूसरों में फैल जाएगी। इसके लिए एक जीन जिम्मेदार है।
टॉम-ऐसे गन्दे काम के लिए भी जीन जिम्मेदार हैं।
डिक-हां है, तुम उसे सिर्फ सेक्स तक ही देखते हो, वह तो सिर्फ एक छोटा-सा हिस्सा है। मूल बात है भावनात्मक लगाव, जो सामान्य तौर पर किसी भी स्त्री-पुरुष में होता है। उनकी सारी जिंदगी यहीं तक तो सीमित नहीं रहती।
टॉम-इसके लिए सड़कों पर उतरने की क्या जरूरत। जी लो जिंदगी। इमोशनल तरीके से।
डिक-जिस तरह दो प्रेमी एक-दूसरे के बिना नहीं जी पाते, वैसा ही आकर्षण ये महसूस करते हैं। यह बात एक शोध से भी सिद्ध हो चुकी है। ये केवल इतना चाहते हैं कि इन्हें भी दुनिया समझे। ये इस दुनिया में खुद को अल्पसंख्यक और असुरक्षित मानते हैं।
टॉम-मुझे तो कानून ही सही लगता है। इन्हें समाज में नहीं होना चाहिए।
डिक-क्यों... इन्होंने क्या अपराध किया है। उल्टे इन्हें समझने वाला कोई नहीं है। ये मौत से बदतर जिंदगी जीते हैं, जबकि बिलकुल सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।
टॉम- ऐसा कोई शास्त्र नहीं कहता। सब धर्मों ने इसे वर्जित माना है।
डिक-वहां तो कई बातें वर्जित हैं। क्या उन सबका पालन हम कर पाए हैं और क्या वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर कई पुरानी धारणाएं बदली नहीं हैं।
टॉम-फिर कुछ लोग सुधर कैसे जाते हैं..
डिक-वे बदलते हैं खुद को। परिवार और समाज के दबाव के आगे। ठीक वैसे ही जैसे कोई लड़का या लड़की परिजनों की मर्जी के आगे घुटने झुका देता है, लेकिन इससे उसका झुकाव कम नहीं होता। क्षणिक आवेश में मौके का फायदा कई लोग उठाते हैं, लेकिन उनमें सड़कों पर उतरने का साहस नहीं होता ।
टॉम- आगे ये शादी का अधिकार मांगेंगे फिर बच्चे गोद लेने का।
डिक-इसमें दिक्कत क्या है, यह उनकी मर्जी पर छोड़ देना चाहिए।
टॉम-कोई मरना चाहता है। उसे भी चलाने दो मर्जी। आत्महत्या को क्यों जुर्म मान रखा है?
डिक-ये तो जिंदगी जीना चाहते हैं और वो खत्म करना। दोनों में फर्क है।
टॉम-लगता है तुम भी पागल हो गए हो, कहीं तुम भी...
डिक-मैं ऐसा तो नहीं हूं, लेकिन होता तो भी मुझे कोई शर्म नहीं आती।
टॉम-तुम सरफिरे हो। तुम्हारी पूरी सोच ही अजीब है..
डिक-या रब न वो समझे हैं, न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जुबां और।


गौरतलब है की सर्वोच्च न्यायालय ने मुद्दे को खारिज करने की बजाय धारा ३७७ के समर्थन में एन जी ओ नाज़ और सरकार को नोटिस जारी कर दिए हैं. बहस के सारें रस्ते अभी खुले हैं कि यह कुफ्र है यां कुछ और...

photo courtesy ;AP an activist in kolkata after delhi highcourt version of decriminalising homosexuality under act 377 of ipc.

टिप्पणियाँ

  1. लगता है तुम भी पागल हो गए हो, कहीं तुम भी...
    Yahi Baat Samjhne Ki Jaroorat Hai.

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  2. vaah,
    man khush ho gaya ise padhkar.
    Kisi ne to acchhe tareeke se apna paksha rakha.

    Bahut aabhar, 100 % sahmat hein.

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  3. Main Dik se puritarah mutafique hun,
    Jo virodh kar rahe hain , vo ye bhi jaante hain ki kai tathakathit dharm guru( Sabhi Mazhabon Ke)bhi samlengik sambandhon me mubtila rahe hain !samaj me sdiyon se is tarah ke sambandh rahe hain !

    Ismat Chuqhati barson pehle ek afsana likh gaeen hai Shayad aap ne padha bhi ho "Lihaf"

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  4. एक मानसिक विकृति को मान्यता दी गयी. इसके लिए इतना हल्ला!

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  5. दिलीप,नीरजजी,तनवीरजी,सुब्रमनियनजी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ...हाँ तनवीर जी मैंने लिहाफ पढ़ी है और यह भी की उन्हें कितना प्रताड़ित किया गया था इस कहानी पर मैंने फिल्म फायर भी देखी है और शोभा डे का strange obsession भी पढ़ा है.... आप सही कह रहें हैं कि जो इसके खिलाफ हैं उन्हें भी गिरेबान में झाँकने कि ज़रुरत है

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  6. हैरी क्‍या कहता है।

    शायद हर टॉम डिक और हैरी इस पर चर्चा कर रहे हैं। कानूनी मान्‍यता का मसला दूर अब इसे सामाजिक मान्‍यता मिल सकती है बशर्ते टॉम डिक हैरी चर्चा करते रहें।

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  7. लम्बे अरसे से कहने की ख्वाहिश थी ..अखबार में ना सही ..आपके ब्लॉग पर ही सही ..बहस के लिए आप साहसिक विषयों को चुनती हैं..अच्छा लगता है ..बागवानी रशोई घर बार आदि से इतर महिलाओं का सामाजिक सरोकार पर भी अपनी आवाज उठाना...!

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  8. sidharthji hairy shayad tatasth raviya rakhnewala ho sakta hai aur vaniji aapko khushi hogi ki yah bahas pahle mere akhbar mein chapi aur fir blog par.shukriya.

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  9. पूरी स्थिति से अवगत कराता यह संवाद रचनात्मक तो है ही पर कथित विवाद की कई परते भी खोलता है.. इस विषय पर पढ़ी गयी सभी पोस्ट्स में से एक उम्दा पोस्ट है ये..

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  10. वर्षा जी
    क्या खूब लिखा है…
    भाई कानून बनाकर क्या इसे रोका जा सकता है?

    और रोकने के लिये इससे बहुत बद्तर चीज़ें हैं।
    कोई किससे और कैसे प्यार करे इससे आपको क्या और कानून को भी क्या?

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  11. oh seeraj ji to ye aap hain.. achcha laga aapko yahan dekhkar...

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