कोई भी कहानी ऐसे अंत के लिए नहीं बनी

हरेक भारतीय उदास है,हर दिल रो रहा है। जैसे-जैसे देश के हिस्सों में ये दुःख के ताबूत पहुंचे हैं वैसे वैसे ही लोगों के दिल चीत्कार कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे समय पीछे लौट जाए और सबकुछ वैसा ही सुहावना हो जाए पहलगाम की ठंडी वादियों की तरह। पत्नी के विलाप का यह दृश्य हृदय तोड़ने वाला है और इस दर्द को जैसे पांच सौ साल पहले कश्मीरी शायरा हब्बा ख़ातून (जूनी )लिख गईं थी। विरह में डूबी जूनी ने लिखा था - बल खाती बहती नदियों के मुहाने तक जाउंगी मै तुम्हें ढूंढ़ते हुए विनती-अरदास करती यहां-वहां डोलुंगी मैं तुम्हें ढूंढ़ते हुए/ ढूंढूंगी मैं तुम्हें चमेली की कुंजों में, मत कहो, दुबारा अब मिलना नहीं होगा। पीले गुलाब के झाड़ों पर फूल मुस्कुरा रहे मेरी भी कलियां फूल बनने को कसमसा रहीं, दरसन की प्यासी इन अंखियों को और न तरसा मत कहो, दुबारा अब मिलना नहीं होगा। ओह ऐसा दर्द एक विरहिणी ही लिख सकती है। अब जब यह लहू जमा देने वाली, आतंकी हरकत हो चुकी है,इतना दर्द देश भर में भेजा जा चुका है तब क्या देशवासी ये उम्मीद कर सकते हैं कि कोई कोशिश...