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अप्रैल, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कोई भी कहानी ऐसे अंत के लिए नहीं बनी

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हरेक भारतीय उदास है,हर दिल रो रहा है। जैसे-जैसे देश के हिस्सों में ये दुःख के ताबूत पहुंचे हैं वैसे वैसे ही लोगों के दिल चीत्कार कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे समय पीछे लौट जाए और सबकुछ वैसा ही सुहावना हो जाए पहलगाम की ठंडी वादियों की तरह। पत्नी के विलाप का यह दृश्य हृदय तोड़ने वाला है और इस दर्द को जैसे पांच सौ साल  पहले   कश्मीरी शायरा हब्बा ख़ातून (जूनी )लिख गईं थी। विरह में डूबी जूनी ने लिखा था - बल खाती बहती नदियों के मुहाने तक जाउंगी मै तुम्हें  ढूंढ़ते  हुए  विनती-अरदास करती यहां-वहां  डोलुंगी मैं   तुम्हें  ढूंढ़ते हुए/  ढूंढूंगी मैं तुम्हें चमेली की कुंजों में,   मत कहो, दुबारा अब मिलना नहीं होगा। पीले गुलाब के झाड़ों पर फूल मुस्कुरा रहे   मेरी भी कलियां  फूल बनने को कसमसा रहीं, दरसन की प्यासी इन अंखियों को और न तरसा मत कहो, दुबारा अब मिलना नहीं होगा। ओह ऐसा दर्द एक विरहिणी ही लिख सकती है। अब जब यह लहू जमा देने वाली, आतंकी हरकत हो चुकी है,इतना दर्द देश भर में भेजा जा चुका है तब क्या देशवासी ये उम्मीद कर सकते हैं कि कोई कोशिश...

झेलम रो रही है कश्मीरियत के क़त्ल पर

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हां,झेलम अब तक रो रही है, कश्मीरियत के इस क़त्ल पर क्योंकि यही वह नदी है जो कश्मीर की जीवनरेखा है और गवाह है धरती के इस ख़ूबसूरत हिस्से  की भोगी हुई पीड़ाओं की। इसने जाना है कि धरती का स्वर्ग कहलाने के बाद आताताई किस तरह पहले लालची नज़रों से देखते हैं और फिर ख़ूनी वार करते हैं।  इसने देखा है कि शातिरों ने इसके अपने बच्चों के हाथ कैसे बंदूकें थमा दी लेकिन अब इसने चाहा है कि इस बेहद सुन्दर जगह को बहुत बुरी नज़र वालों ने घेर रखा है और अब उनकी शिनाख्त ज़रूरी है।  उस दिन  मंगलवार को झेलम भी ज़ार ज़ार रोई है क्योंकि जिन मासूम बेगुनाहों का खून उसने देखा है, वह उसे भीतर से सुखा दे रहा है। वह नईनवेली दुल्हन जो अपने पति के शव के पास बिलख रही है, झेलम उसके दुःख को झेल पाने में नाकाम है। इसे कश्मीरी आवाम ने भी उसी तरह महसूस किया है और यही वजह है कि ग़मज़दा होकर सड़कों पर हैं ,मशाल लेकर विरोध प्रदर्शन  कर रही है। अपने शहर बंद कर रही है। जम्मू से श्रीनगर तक यही भावना है जैसे अभी चुप रहेंगे तो आगे और बड़े गुनाहों  के भागी होंगे । वह गुहार लगा रही है बंद करो, बंद करो यह ख़ूनी हिंसा बंद ...

वक़्फ़ ने किया क्या नया सितम ..

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मधुर गीत के बोल  वक़्त ने किया क्या हंसी सितम . . के साथ छेड़ छाड़ के लिए माफ़ी के साथ यह शीर्षक लिखा है। गीत जिसे कैफ़ी आज़मी साहब ने  लिखा और गीता दत्त ने  गाया था। दरअसल  वक़्फ़  ( संशोधन)  अधिनियम, 2025 ने अजब सितम यह किया है कि संसदीय शक्ति और न्यायिक शक्ति के बीच जारी टसल को और तेज कर दिया है। हाल ही में कुछ ऐसे फैसले और टिप्पणियां आई हैं  कि सरकार को यह लगने लगा है कि सर्वोच्च न्यायालय अपनी लक्ष्मण रेखा लांघ रहा है तभी तो पहले किरन रिजिजू और फिर शुक्रवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कह दिया कि  अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के ख़िलाफ़ 24 घंटे उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि सर्वोच्च  कौन  है न्याययालय या संसद।  वक़्फ़  ( संशोधन) बिल पर सुनवाई के दौरान तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भले ही कोई स्टे नहीं दिया है लेकिन अगली सुनवाई तक तत्काल  कुछ बातों पर रोक लगा दी ...

देश को एक ही फ्रेम में फिट करने की मनमानी !

ऐसा लगता है जैसे देश पर राज करने वालों ने अपने लिए एक फ्रेम बनवा ली  है और फिर देश को हर हाल में उसी फ्रेम में फिट करने की ज़िद है, बिना इस बात की परवाह किये कि उनकी इस कोशिश में उसका मूल तत्व ही फ्रेम से छिटक रहा है,कट रहा है ,टूट रहा है । यकायक यह कोशिश और तेज़ हो गई है जैसे किसी राजा को यकीन दिला दिया गया हो गया हो कि ऐसा ना हुआ तो अनर्थ हो जाएगा। बेचैनी इन दिनों इस कदर बढ़ी है कि नागरिकों में  डर बैठाया जा रहा है, खेमे बनाए जा रहे हैं। बस एक ही कोशिश कि बांटों बांटो और बांट दो। देश के कुछ हिस्से हिंसा की चपेट में हैं ,निर्दोष नागरिक मर रहे हैं लेकिन चिंता बस फ्रेम की है। यह चिंता इतनी सघन और स्वनिर्मित है कि देश की जनता को मूल खतरों से आगाह ही नहीं किया जा रहा है। दुनिया की नई उथल-पुथल के बीच आर्थिक खतरों और मंदी की आशंका से देश को मज़बूत करने की बजाय वह अफीम दी जा रही है, जिसमें देश सब दर्द भूलकर बस नारे लगाने लगता है। नेताओं को यह दंदफंद अब रास आ गया है। यह झूठ है तो फिर क्यों एक तरफ़ तो हवाई अड्डे का शिलान्यास होता है और दूसरी ओर वह बात छेड़ दी जाती है जिस पर जब बहस हुई तो सद...

केवल आइसक्रीम चिप्स मत बेचो चिप बनाओ

वाणिज्य और उद्योमंत्री पीयूष गोयल के भाषण के बाद उपजे बवाल को समझने के लिए शहरों में डिलीवरी सर्विसेस पर एक निगाह डालना ज़रूरी है । कुछ समय से जयपुर के कुछ हिस्सों में रहने वाले खुद को ऐसे नागरिक के रूप में देख रहे हैं जिनके क़दमों में हर चीज़ बस आठ से बीस मिनटों में हाज़िर रहने के लिए आतुर है। 'हुकुम करो आका' की तर्ज़ पर ये डिलीवरी बॉयज़ दौड़ते रहते हैं और हर ज़रूरत का सामान पहुंचा देते हैं। 43 डिग्री की तपती दोपहरी में सड़कों पर कोई नहीं हैं पर ये हैं। इस चाल में महामारी कोविड ने जान फूंकी थी लेकिन अब जो हो रहा है इसमें कीमतों में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा है और कई बड़े प्लेयर मैदान में उतर आए हैं। केवल आठ मिनट में ज़रूरी सामान पहुंचाने की होड़ तो दो सालों से है लेकिन अब तो पूरा का पूरा राशन, उसे पकाने के लिए स्टोव, कुकर और इलेक्ट्रॉनिक सामान भी जल्दी पहुंचाने की ज़िद है। जिनके पास धन है, वे फ़ोन में बंद जिन्न  को आदेश देते हैं और वह चुटकी बजाते सब हाज़िर कर देता है। हज़ारों स्टार्टअप्स इन अमीरों की ज़रूरतों को पूरा करने में लगे हुए हैं। ऐसा लगता है जैसे चंद शहरी अमीरों की चाकरी में बड़ी तादाद में...

ये बुलडोज़रों जैसी सख्त हुकूमतें

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  एक आठ साल की बच्ची बुलडोज़र से ढहते और जलते हुए घर से अपनी किताबें लेकर दौड़ती है ताकि यह तबाही उसकी पढ़ाई को ना रौंद दे। यह दृश्य वाकई बहुत क्रूर है, संविधान के मौलिक अधिकारों का हनन है और भारत का कानून कभी इसकी अनुमति नहीं देता है। क़ानून इस बात की भी इजाज़त नहीं देता है कि पुलिस मुठभेड़ में मार दिए गए आरोपी के परिवार और उसके आस-पास के घरों को शासन का अमला ज़मींदोज़ कर दे और फिर प्रचारित करे कि यह हमारा 'बुलडोज़र जस्टिस' है। यह भारतीय संविधान की उस भावना की भी अवहेलना है जो मानती है कि अपराध साबित होने तक हर आरोपी निर्दोष है और किसी एक के अपराध की सज़ा उसके परिवार को नहीं दी जा सकती।  मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के दो जज जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा - "नागरिकों के सिर की छत ऐसे नहीं गिराई जा सकती। ये मामले हमारे विवेक को झकझोर देते हैं। यह क़ानून और मानवता के ख़िलाफ़ है।" कोर्ट ने 'बुलडोज़र न्याय' को बुल्डोज़र अन्याय साबित करते हुए  प्रत्येक परिवार को दस-दस लाख रूपए मुआवज़ा देने का भी आदेश दिया। केवल आरोप और शक के आधार पर किसी का घ...