थारे जैसी न रहना, इश्क जरूर करना



इस लेख से पहले ऐसा कोई डिसक्लेमर नहीं है जो कहे कि लिव इन रिश्ता पाप है और युवाओ को इससे बचना चाहिए । बस इतना ज़रूर कि  ज्यों ही आपका लिव-इन पार्टनर ऊंची आवाज़ में बात करे और उसका हाथ आपके खिलाफ उठ जाए उसका साथ छोड़ दो। ना केवल छोड़ो बल्कि कानूनी कार्रवाई भी करो। लिव इन रिश्तों से जुड़ा भारतीय कानून बहुत स्पष्ट और स्त्री के हक़ में है। हो सकता है कि आगे बढ़ते हुए  पीछे के सारे पुल आपने ढहा दिए हों तब भी नया रास्ता खोजिये और जो नहीं मिलता है तो बनाइये। माता -पिता से सबसे बड़ी अरज कि वे बच्चों को माफ़ करना सीखें। उन्हें  सबक सिखाने की मंशा ना पालें। बेटा हो या बेटी उम्र के इस दौर में उनका साथ ना छोड़ें। हो यह रहा है कि बच्चे जिस दुनिया में बड़े हो रहे हैं वह इंटरनेट की दुनिया है। संसार उनके सामने एक गांव की तरह है और दुनिया की संस्कृति भी। तभी तो 'एमिली इन पेरिस' जैसी वेब सीरीज भारत के युवाओं में भी लोकप्रिय है। 
'एमिली इन पेरिस' में अमेरिका के  शहर से एक लड़की फ्रांस की राजधानी पेरिस पहुंचती है जो साथ ही  साथ दुनिया में  फैशन और कला की राजधानी भी है। वह एक मार्केटिंग कंपनी में है और शहर में कई लड़कों से मिलती है वह भी तब जब उसका ब्रेक अप हो चुका है। अपने काम में वह माहिर है और किसी रिश्ते का बोझ वह नहीं ढोती,कोई मलाल या अपराध बोध उसे नहीं है।  भारत का युवा रिश्ते जोड़ने की शुरुआत तो कर चुका है लेकिन उन परिवार नहीं।  ऐसे में उसके टूटने पर वह तकलीफ  को बर्दाश्त नहीं कर पाता। वह तनाव और अपराध बोध में घिर जाता है नतीजतन रिश्ते में अनबन,हिंसा और ख़ुदकुशी। घर से दूर जुड़ने की पहली सीढ़ी वह पार कर लेता है लेकिन फिर जब सामाजिक बंधन और रिश्ता निभाने की बात आती है तो परिवार साथ नहीं देता। सामजिक कट्टरता  उसे तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ती । विधर्मी तो बहुत-बहुत दूर की बात है परिवार विजातीय से भी शादी की अनुमति नहीं देते। ऐसे में युवा आत्महत्या की ओर मुड़ता है। परिवार के दबाव में आत्महत्या करने वाले लड़कों की संख्या भी बढ़ी है। लड़कियों का हाल लड़कों से ज़्यादा बुरा है। साल 2021 में जिन 45 हज़ार महिलाओं ने खुदकुशी की उनमें  1752 आत्मनिर्भर और प्रोफेशनल महिलाएं थीं और जिन्होंने प्रेम  में धोखा खाने के बाद यह अंधेरा रास्ता चुना उनकी संख्या 2894  थी। इन आंकड़ों को लिखने का आशय यह नहीं है कि विवाहित स्त्रियां आत्महत्या नहीं करती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आकड़े बताते हैं कि कुल आत्महत्या करने महिलाओं में से 64 फीसदी महिलाएं विवाहित होती हैं। दुनिया से निराश वे ही ज़्यादा होती हैं।  आत्महत्या करने वाली महिलाओं में 24 फीसदी अविवाहित होती हैं। 
   ज़ाहिर है विवाह ख़ुशी या सुरक्षा की पावती नहीं है। आप कहेंगे देश इस वक्त  जब देश और उसका मीडिया छह महीने पहले हुई एक जघन्य हत्या  के हत्यारे आफ़ताब पर  बात कर रहा है यहां खुदकशी की बात हो रही है ? यह लिव इन रिश्ते का मामला तो है ही कथित लव जेहाद का भी है यानी एक मुस्लिम लड़के का हिन्दू लड़की  को जाल में उलझाना और फिर मार डालना। पुलिस ने किसी क्राइम थ्रिलर के अंदाज़ में इस अपराध को जनता के सामने रख दिया है। आफ़ताब बनाम श्रद्धा सबकी ज़ुबां पर है और टीवी डिबेट्स में विशेषज्ञ आकर बता रहे हैं कि एविडेंस कैसे बनाए और नष्ट किये जा सकते हैं और श्रद्धा का फ़ोन अब तक नहीं मिला है। सोशल मीडिया पर आफ़ताब हत्यारा तो साबित हो ही गया है समुदाय विशेष को यह कहकर भी गालियां दी जा रही हैं कि ये तो बहुत प्यार से बकरा भी पालते हैं और फिर मार कर खा जाते हैं। श्रद्धा के साथ इस कसाई ने यही किया। यह वही थ्योरी है जो अमुमन सब सुनना चाहते हैं। पिछले कुछ बरसों में ऐसा माहौल तो देश में हम सबने तैयार कर ही दिया है।
 
  आफताब हत्यारा हो सकता है लेकिन अभी पुलिस की जांच जारी है और अदालती सुनवाई बाकी। एक साल पहले ये दोनों वसई ,मुंबई के एक फ्लैट में भी किराए से रहे थे जहां के पड़ोसी इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये दोनों यहां  भी लड़ते थे लेकिन किसी ने भी सोसाइटी में जाकर शिकायत नहीं की। यह दोनों  खुद को शादीशुदा बताकर रहते थे क्योंकि सोसाइटी अविवाहित जोड़ों को रहने नहीं देती। इन दोनों ने अपनी तस्वीर के साथ अपने माता-पिता की तस्वीर भी वहां जमा की थी ताकि आभास हो कि  इनके परिजन यहां आते-जाते रहेंगे जबकि श्रद्धा के माता -पिता इस रिश्ते से नाखुश थे। ऐसे अनगिनत जोड़े हमारे समाज में हैं जो झूठ बोलकर अपने लिए रहने के ठिकाने ढूंढते हैं। मकान या फ्लैट देने वालों के लिए अविवाहित लड़कियां तो जैसे बिजली का नंगा तार हैं। समाज को वे लड़कियां भी नापसंद हैं जो अपने आस-पास के माहौल से अलग या खिलाफ होकर खुद का मुकाम बनाती हैं। ज्यों ही इनके नाकाम या गिरने की कोई खबर आती है समाज दूसरी लड़कियों को इनका उदाहरण देने लगता है। लड़कियों के आगे  बढ़ने के फैसलों को इन घटनाओं से बड़ा झटका लगता है और वे पीछे धकेल दी जाती हैं। परिवार और समाज से छिपकर ऐसे रिश्ते बनते हैं तो लड़कियों के आपराधिक तत्वों के सम्पर्क में आने की आशंका बढ़ जाती है। 

आखिर क्यों माता पिता इन रिश्तों को नहीं स्वीकार पाते। ब्रिटेन में रह रहीं भारतीय नागरिक नीरा एक जगह लिखती हैं कि ऐसे देश में रहती हूं जहां लिव-इन टुगेदर  आम बात है। इसका अंजाम मैंने देखा है कि नॉनकमिटल मर्दों के साथ अकेली मांओं की संख्या बढ़ी है। नारीवादी हूं। दो बेटियों की मां भी। कल अगर वे ऐसा करना चाहें तो खुशी-खुशी करने दूंगी, कह नहीं सकती। यही भय हर माता -पिता के हिस्से आता है और वे प्रतिरोध भी करते हैं लेकिन ऐसा भी तो नहीं है कि सभी विवाहों में पुरुष प्रतिबद्ध ही होते हैं या वे टूटते ही नहीं। कितनी एकल माएं अपने बच्चों को पूरी लगन से बड़ा कर रही हैं। जैसा की ऋषि कन्या शकुन्तला ने भी किया। शकुन्तला ने अपने पुत्र भरत को वन में बड़ा किया क्योंकि समाज तब भी वही था। विवाह संस्था होते हुए भी राजा दुष्यंत और शकुंतला ने गंधर्व विवाह किया। ऐसा विवाह जिसके लिए राजा प्रतिबद्ध नहीं था और वह रिश्ते को ही भूल गया। यह शकुंतला का ही तप था कि बेटे को इस कदर काबिल बनाया कि राजा को लौटना पड़ा। यह पौराणिक कहानी स्त्री के साहस की तो है ही लिव इन रिश्तों की भी है जो हर काल खंड में रहे हैं। 
 सिंध की शायरा अतिया दाऊद की एक कविता है  जो उन्होंने अपनी बेटी के लिए लिखी है। 
गर तुझे कारी-कारी कहकर मारें,
मर जाना, इश्क जरूर करना।
शराफत के शो-केस में
बुर्का लगाकर न बैठना,
इश्क जरूर करना।
प्यासी ख्वाहिशों के बियाबां में
थारे जैसी न रहना,
इश्क जरूर करना।
गर किसी की याद हौले से,
तेरे मन में उठ रही हो, मुस्करा पडऩा,
इश्क जरूर करना।
वो लोग क्या करेंगे?
सिर्फ पत्थर फैं क कर,
तुझे मारेंगे
जीवन पल को तू भोगना,
इश्क जरूर करना।
तेरे इश्क को गुनाह भी कहा जाएगा
तो क्या....? सह लेना,
इश्क जरूर करना।

आफ़ताब श्रद्धा का हत्यारा साबित होता है तो उसे फांसी की सजा देने की मांग लोग कर रहे हैं या शायद वे इस हैवानियत को सुनकर इस नतीजे पर पहुंच गए हैं। श्रद्धा की मां इस दुनिया में नहीं लेकिन पिता भी आफताब को फांसी पर ही देखना चाहते हैं। आफताब को फांसी होना ठीक ही होगा  क्योंकि फिर किसी के मन में उस हत्यारे के प्रति सद्भावना नहीं जागेगी  जैसे  बिलकिस बानो के अपराधियों के साथ जागी।  उन्हें समय से पहले ही अच्छे आचरण के कारण रिहा कर दिया गया। मार्च 2002 के  गुजरात दंगों में उनसे सामूहिक बलात्कार हुआ ,उनकी तीन साल की बेटी मार दी गईं ,उनके गर्भस्थ शिशु की भी मौत हो गई , परिवार के सात सदस्यों को भी  मार दिया गया। सीबीआई की विशेष अदालत ने मुजरिमों को सजा दी जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट ने बरक़रार रखा था । ये संख्या में ग्यारह थे जिन्हें इस साल पंद्रह अगस्त को गुजरात सरकार ने रिहा कर दिया। आफताब को फांसी होनी ही चाहिए ताकि फिर कभी वह इस अपराध से मुक्त ना किया जाए कोई श्रद्धा इसलिए ना मारी जाए क्योंकि उसने अपने मन की सुनी थी। 

वर्षा भम्भाणी मिर्ज़ा 

  

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