सरकार का आग से खेलने वाला पथ अग्निपथ

बुलेट ट्रैन के सपनों को जीते-जीते हम बुलडोज़र और अब अग्निवीर की  बुलेट ट्रेनिंग के पहले ही निशाने पर आ गए हैं। सरकार इसे नौकरी कह रही है लेकिन युवा को ऐसा नहीं लग रहा ।वह सड़क पर है आंदोलित है उद्वेलित है।  सरकार उस युवा को सेना में चार साल के लिए नौकरी देने की बात कर रही है  जो चार साल से कड़ी मेहनत सेना में भर्ती के लिए कर रहा था । कुछ तो इस अवधि में आयु सीमा भी पार कर चुके। तीनों सेनाओं के लिए छियालीस  हज़ार युवाओं  की भर्ती होगी जिनकी उम्र अठारह से इक्कीस साल होगी। पहले साल तीस हज़ार ,  दूसरे साल 33  तीसरे साल  36हजार पांच सो और चौथे साल 40 हज़ार रुपए दिए जाएंगे कुल लगभग ग्यारह  लाख सेवा के अंत में  इन सैनिकों  को मिलेंगे । कोई पेंशन नहीं कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं। अब भर्ती रैलियां भी नहीं होगी। तर्क ये कि बूढी सेना अब  जवान होगी लेकिन  वे जज़्बात जो मृत्यु से यारी के होते हैं प्रतिबद्धता के होते है, देश पर मर मिटने के होते हैं वे कहां से आएंगे? चार साल की तो डिग्री होती है और उसके बाद फिर इंटर्नशिप भी। चार साल बाद भी ये युवा तो  युवा ही रहेंगे। वे फिर बेरोज़गार की कतार में शामिल नहीं हो जाएंगे  ? आगे की नौकरी और लाभ इनमें से चुनिंदा पचीस फीसदी को मिलेंगे तब शेष फिर किन्हीं बड़े कॉर्पोरेट घरानो को  छोटी-छोटी  पगारों  पर सौंप दिए  जाएंगे  ? कुछ को पुलिस और  अर्द्धसैनिक बलों में शामिल कर भी लिया जाए  तब भी क्या ये दोनों सेवाएं प्रशिक्षण के एक ही पैमाने से होकर गुजरती हैं? अच्छे नतीजों की कल्पना कर भी ले  जाए तो क्या ये हो सकता है कि ये वाली पुलिस आरोपी को थाने में  कूटेगी  नहीं और खुद ही न्यायाधीश बनकर आरोपियों के (नहीं आरोपी की बीवी के) घर पर बुलडोज़र नहीं चलवाएगी। 

फिलहाल इन सबके  जवाब देश के युवाओं की आँखों से पढ़े जा सकते हैं।  वे  हताशा और गुस्से में है। राजस्थान ,बिहार, हरियाणा ,उत्तरप्रदेश,हिमाचल और मध्यप्रदेश का युवा सड़कों पर है। वह छला हुआ महसूस कर रहा है। दरअसल यह पूरी कवायद एक चतुर वणिक के सीईओ की मालूम होती है जिस पर कर्मचारियों की छटनी का दबाव हो  और वह एक ऐसी धांसू स्कीम मालिक के सामने रख देता है जिसमें नए कर्मचारी ठेके पर हों वह भी  बहुत कम समय के लिए हो। मालिक का आर्थिक भंडार बचने लगता है और कर्मचारी का संघर्ष बढ़ने।  दूसरे लफ़्ज़ों में कहें तो 'धंधा नी वात' है ये लेकिन कल्याणकारी राष्ट्र ऐसी  बुद्धि पर नहीं चलते । सामाजिक ताना बाना भी यूं नहीं चलता।

 वीर भूमि राजस्थान की धरा से लाखों सिपाही सेना में हैं। शांतिकाल में भी उनकी देह के गांवों में आने का सिलसिला बना रहता है। युद्ध के समय तो गिनती बहुत मुश्किल हो जाती है। वीर माताएं गांवों में शहीद की मूर्तियों और बहादुरी की गाथाएं सुना सुना कर बच्चों को बड़ा करती हैं तब कहीं जाकर मिलते हैं सेना को देश पर जान न्योछावर करनेवाले सपूत । सरकार में शामिल इसी सेना के मेजर कह रहे हैं कि देश की सेना बूढ़ी हो रही थी अब जवान होगी। 33 वर्ष की औसत आयु वाली इसी सेना ने देश पर कुर्बान करने वाले सैनिक दिए हैं जो कई मोर्चों पर कामयाब रहे हैं । मेजर जनरल डॉ यश मोर ने तो अपने ट्वीट में साफ कहा है   कि अब इस पर प्रतिक्रियाओं की बौछार होगी और फिर बदलाव। इस शानदार स्कीम को तुरंत प्रभाव से रोक दिया जाना चाहिए और पहले की तरह भर्ती की जानी  चाहिये। प्रतिरोध का नतीजा तुरंत मिला और अब फैरबदल  करते हुए अग्निपथ स्कीम की आयु सीमा साढ़े सत्रह से 21 की बजाय  23 कर दी गई है। 

हरियाणा के रोहतक जिले में सचिन नाम के एक युवा ने जन दे दी है । वह अपने गांव से आकर पीजी में रहकर सेना में भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहा था ।दो साल पहले कोरोना की वजह से भर्ती टल रही थी और अब इस अग्निपथ योजना ने उसके सारे सपनो को आग के हवाले कर दिया। सरकार ने आयुसीमा में ढील की घोषणा अब की है लेकिन तब तक सचिन मौत को गले लगा चुका था।रोहतक में विरोध प्रदर्शन बढ़ गया है और किसान आंदोलन से जुड़े नेता भी इसमें शामिल हैं। फिलहाल यहां न जय जवान हैं और न जय किसान।हर साल एक करोड़ युवा इस परीक्षा की तैयारी करते हैं।ज्यादातर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं।इस वर्ग में निराशा है जिसका संज्ञान सरकार को लेना जरूरी है। 

ऐसा क्यों है कि बड़ी और देश की सुरक्षा और आत्मसम्मान से जुडी भर्तियां भी किसी पैकेज की तरह साधी जा रही हैं ?हम इजराइल से प्रभावित रहते हैं लेकिन इतना पैसा तो बल्कि इससे भी ज्यादा तो चार साल की ट्रेनिंग में सिपाहियों को जेबखर्च बतौर दे दिया जाता है। सबसे बड़ी सेना दुनिया में चीन के पास है इकीस लाख अस्सी हज़ार की जबकि भारत की तकरीबन साढ़े चौदह लाख और लगभग एक लाख खाली पड़े हैं । चीन रक्षा बजट में एक सौ बाईस लाख करोड़ खर्च करता है और भारत खर्च करता है छह लाख करोड़। बजट की इस कमी की गाज भर्ती रैलियों पर ही गिरी मालूम होती है। एक कॉन्ट्रैक्ट को नौकरी का नाम युवाओं को आक्रोशित कर रहा है। अग्निपथ के अग्निवीर किसी अग्नि परीक्षा से ही गुजरेंगे। हरिवंश राय बच्चन की कविता इस माहौल पर भी मौजूं होगी सोचा नहीं था शायद यही श्रेष्ठ कवि होना है। अंतिम चार पंक्तियां देखिये। 

यह महान दृश्य है, 

चल रहा मनुष्य है ,

अश्रु स्वेद रक्त से, 

लथपथ लथपथ  लथपथ ,

अग्निपथ अग्निपथ  अग्निपथ। 

यही सब जनता ने नोटबंदी ,कोरोना के समय देशबंदी , सीएए और  किसान अंदोलन के दौरान भी देखा था। बीच बीच में कई बदलाव और जनता सड़कों पर। इस बार सेना में भर्ती के  इच्छुक युवा की बारी है और वह सड़कों पर है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल पी के सहगल को चार साल की अग्निपथ योजना किसी इंटर्नशिप और ड्यूटी पर किसी टूर की तरह लगती है। वे कहते हैं यह जल्दबाज़ी में लाई गई है, इसमें रिस्क है।  मौजूदा सिस्टम में कोई खामी नहीं है और इसमें छेड़छाड़ की कोई ज़रुरत ही नहीं है। फिर सरकार को इस योजना को इतनी जल्दबाजी में लाने की क्या पड़ी थी ?राजस्थान के नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल न कांग्रेस के हैं न भाजपा के हां  प्रधानमंत्री से अपनी सहमति वक्त-वक्त पर जताते रहते हैं  लेकिन उनकी राष्ट्रीय  लोकतान्त्रिक पार्टी ने भी अग्निपथ योजना के विरोध में राजस्थान भर में प्रदर्शन कर रही है । उनका कहना है एक मुलाकात में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कोरोना की वजह से आयु में दो साल की छूट का वादा किया था ये लेकिन वे मुकर गए। देश की सरकार ने पहले किसानों को छला और अब जवानों को छल रही है। ज़रुरत पडी तो हम विरोध प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली कूच  करेंगे। 

देखा जाए सरकार के लिए बीता पखवाड़ा बड़ा ही कठिन साबित हो रहा है। नूपुर शर्मा के हज़रत मोहम्मद पैगम्बर को लेकर बयान के बाद कई देशों के सख्त रवैये के बाद देश में ही लोग सड़कों पर थे। बुलडोज़र बाबा की सरकार ने प्रयागराज ने उस महिला के मकान को ही गिरा दिया जो आरोपी भी नहीं। पुलिस खुद ही आरोपी बना रही है, पोस्टर लगा रही है जेल में डाल रही है और फिर बुलडोज़र से मकान भी गिरा रही है। बदले की कार्रवाई नोटिस भी दिलाएगी इसी डर से से लोग मकान- दुकान  बेच रहे हैं। क्या कोई सरकार इसलिए चुनकर आती है कि नागरिक की नाक में दम करे। उसे रोज़गार और जीने के अधिकार से अलग कर दे। नूपुर शर्मा को दूसरा पैनेलिस्ट उकसाता है वे नफरती बयान दे डालती है, पार्टी निलंबित कर कहती है कि कार्रवाई कर तो दी अब और क्या करें ? आप तो दंगाई हैं। उकसाना शायद ऐसा ही होता है। हिंसा और बलप्रयोग दोनों ही गलत है इसके लिए उकसाने वाले राष्ट्रविरोधी हैं। आंदोलन शांतिपूर्ण हो यही महात्मा गांधी के देश की पहचान और सलीका रहा है। यहां डेमोक्रेसी है बुलडो क्रेसी नहीं। 





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