जनता के खिलाफ द्रोह से डरो सरकारो

 कानून 124 A पर सरकार पुनर्विचार करे इससे पहले एक मजबूत विचार सुप्रीम कोर्ट ने रख दिया है।  अब इस कानून के तहत नए मामले दर्ज़ होना स्थगित रहेगा ,जो जेल में हैं वे ज़मानत के लिए अपील कर सकते हैं। वाकई एक बड़ा दिशा निर्देश उन पत्रकारों , कॉमेडियंस ,मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए जो सत्ताधारी दल के निशाने पर केवल इसलिए होते क्योंकि वे अपनी राय रख रहे होते  हैं। वे  तोते की तरह नहीं बोलते जो अपने आकाओं की खुशामद में अपना विवेक अपना ज़मीर ताक पर रखकर चलता है। 1860का यह कानून अंग्रेज़ी हुकूमत की देन था एक अंग्रेज इतिहासकार जिसे हम थॉमस मैकाले के नाम से जानते हैं। जिसकी शिक्षा प्रणाली को हम कोसते नहीं थकते उसी कानून को हम आज़ादी के अमृत महोत्सव तक खींच कर ले आए हैं सिर्फ इसलिए कि असहमत की आवाज़ दबा सकें, उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट ला सकें ,जेल में सड़ा सकें। महात्मा गांधी ,बाल गंगाधर तिलक ,भगतसिंह, सुखदेव ,जवाहर लाल नेहरू जैसे कई देशभक्त इस राजद्रोह कानून के तहत जेल में डाले  जा चुके हैं।  अब जब कानून मंत्री किरण रिजिजू लक्ष्मण रेखा याद दिला रहे हैं तो सरकार की मंशा पर भी संदेह झलकता दिखाई देता है। 

बेशक सुनवाई की अगली तारीख जुलाई 23 तय की गई है लेकिन पत्रकारों,मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सत्ता से अलग अपनी सियासी आवाज रखने वालों के लिए यह भरी गर्मी में राहत  की फुहार का वक्त है। तपती धूप में ठंडी छांव का आभास है।  पत्रकार विनोद दुआ , कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी , मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी, क्लाइमेट  कार्यकर्ता दिशा रवि पर राजद्रोह की यह धारा लगाई गई। विनोद दुआ और स्टेन स्वामी तो अब इस दुनिया में नहीं रहे।सत्ता कोई भी हो किसी भी राज्य की हो वह इस कानून के जरिए कई विस्सल ब्लोअर्स की सीटी बंद करने का काम करती आई  है ताकि उनकी सत्ता निरंकुश रहे। विनोद दुआ भाजपा की वजह से और असीम त्रिवेदी कांग्रेस कार्यकाल में सताए गए। विनोद दुआ यू ट्यूब पर एक शो करते थे जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की गई थी। उन पर हिमाचल प्रदेश के एक भाजपा नेता ने प्राथमिकी दर्ज की और राजद्रोह का मुकदमा कायम हुआ। कार्टूनिस्ट असीम ने यूपीए दो के कार्यकाल में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के तहत कार्टून अभियान चलाया था और फिर उनके खिलाफ राजद्रोह लगा दिया गया। दिशा रवि ने किसान आंदोलन के समय महज एक टूल किट शेयर की थी और दिल्ली पुलिस उन्हें बंगलौर से गिरफ्तार कर दिल्ली ले आई। किशोरचंद्र वांगखेम  मणिपुर के पत्रकार हैं उन्होंने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की आलोचना में एक वीडियो सोशल मीडिया पर डाला और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज  दिया गया, उनकी पत्नी दो बच्चों के साथ पति की जमानत के लिए भटकती रहीं।एक बार फिर  एक दूसरी पोस्ट जिसमें उन्होंने गाय के गोबर से कोरोना के इलाज  का मज़ाक उड़ाया था  , राष्ट्रिय सुरक्षा कानून के तहत जेल भेज दिया गया। सत्ता ऐसी आवाजों को कुंद करने के लिए 124 A का हमेशा दुरूपयोग करती आईं हैं जबकि 1962 के केदारनाथ केस के समय सर्वोच्च न्यायालय स्पष्ट कर चुका था कि जब तक हिंसा की आशंका ना हो तब तक इस धारा के तहत मुकदमा ना हो। इस लिहाज से राणा दंपति की बातों से इस बात की आशंका स्टेट को हो सकती है फिर भी महाराष्ट्र सरकार के राजद्रोह लगाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। 

इस कानून का इस्तेमाल हमेशा अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए सरकारें करती रही हैं और आकाओं  के अंधभक्त अपने अंक बढ़वाने के लिए। आरोपी दरअसल यहां पीड़ित होता है ,मीडिया में उसके खिलाफ हैडलाइन बन जाती है, जमानत नहीं हो पाती और ट्रायल सालों साल चलती है।  कोई अपराध सिद्ध नहीं हो पाता। ऐसा इसलिए क्योंकि अपराध साबित होने की दर दो  फीसदी भी नहीं है। 2018 में 70 मामलों में से एक भी नहीं,2019 में 93 में से दो और 2020 में 73  में से  केवल एक मामले में अपराध साबित हुआ। जाहिर है यह धारा केवल उत्पीड़न का एक हथियार भर है। रिटायर्ड आईपीएस विजयशंकर सिंह साफ़ कहते हैं कि राजद्रोह हो या राष्ट्रिय सुरक्षा कानून इसमें कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जो केवल राजनैतिक संकेतों के आधार पर कायम किए जाते हैं। हमें अच्छी तरह से पता होता है कि ये अदालत में टिक नहीं पाएंगे। उस समय तो यही होता है कि चार्जेस लगाओ, देखा जाएगा। दिक्कत ये भी है कि पुलिस का  न्यायायिक दिमाग दक्ष नहीं होता और न ही इस दिशा में कोई प्रयास होते हैं ये बीमारी ब्रिटिश काल से है ,अफसर भी इस बात को जानते हैं लेकिन अफसर भी तो वही होता है जो सत्ता को पसंद होता है तो निष्पक्ष सरकार का होना जरूरी है। 

सरकार  की निष्पक्षता का तो ये हाल है कि उसे तो मसखरे भी  बर्दाश्त नहीं होते। कॉमेडियंस वीर दास ,मुनव्वर फारुकी , कुणाल कामरा ,श्याम रंगीला का व्यंग्य ही सरकारों को बाण की तरह चुभता है। मुनव्वर को दो महीने तक मध्यप्रदेश सरकार ने जेल में रखा। वह  इंदौर में शो से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया। क्या करता है एक पत्रकार और व्यंग्यकार लिखता बोलता ही तो है। ऐसा करने पर ही सत्ता उसे अपराधी मानने लगती है। वह लिखेगा बोलेगा नहीं तो क्या करेगा। आपका काम नेतागिरी है तो उसका लिखना। वह कैसे अपना काम करे। प्रजातंत्र में इस पाए का मज़बूत होना बहुत जरूरी है और सुप्रीम कोर्ट के इस कानून के स्थगन से इस बिरादरी की बाकायदा सुध ली गई है। आशंका होती है जब कानून मंत्री कहते हैं कि एक लक्ष्मण रेखा होती है जिसका सभी को ध्यान रखना चाहिए लेकिन क्या कानून मंत्री ने इस बात में लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखा है जब वे कहते हैं कि  प्रधामंत्री की इच्छा से कोर्ट को अवगत करा दिया गया है?


 



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वंदे मातरम्-यानी मां, तुझे सलाम

सौ रुपये में nude pose

एप्पल का वह हिस्सा जो कटा हुआ है