क्या यह निज़ाम शांतिपूर्ण विरोध की ज़ुबां समझता है ?

निर्दोष लोगों को जब यूं पिटते ,जेल जाते और मरते देख रही हूँ तो सोचती हूँ कि क्या वाक़ई यह निज़ाम शांतिपूर्ण विरोध की ज़ुबां समझता है ? गमला भी वही अच्छा माना जाता है जिसमें पानी की निकासी का छेद ज्यादा बड़ा न हो वरना सारा पानी बह जाएगा और पौधा जीवित नहीं रहेगा। कहीं पढ़ा था कि बापू की अहिंसा और सत्याग्रह को समझने का जो माद्दा ही अगर अंग्रेज़ सरकार में ना होता तो शायद आज़ादी मुमकिन नहीं थी। फिर भी निजी तौर पर मुझे लगता है कि वह बापू का क़द था जो इस गौरी सरकार को झुकाने में क़ामयाब हुआ। उनकी पारदर्शिता, परमार्थ और नैतिक बल ने उनके दुश्मनों को भी उन्हीं के सामने पिघलने पर मजबूर किया। हमारे देश के राज्यों के गमलों  के छेद बहुत बड़े हैं।  उत्तरप्रदेश,कर्नाटक और दिल्ली  के गमलों के छेद ना केवल बड़े हैं बल्कि ये गमले ही जड़ों को कस रहे हैं, काट रहे हैं। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन वहां  के लिए मायने रखता है जहाँ उसकी इज़्ज़त हो ,उसे समझ पाने का मानस हो।  हम उनसे वफ़ा की उम्मीद कर रहे हैं जो ये जानते ही नहीं कि यह है क्या। 
कोई अपने बंधुओं को ढूंढ़ने गया तो पीट दिया गयाऔर गिरफ़्तार कर लिया गया, किसी माता-पिता को एक साल के बच्चे से अलग कर जेल में ठूंस दिया गया ,शादी ब्याह में छुट्टी मज़दूरी करनेवाले ग़रीब के तो पेट में ही गोली दाग़ दी गई। एक पिता चौराहे से अपने स्कूल से लौटे बच्चे को  लेने आया था, पुलिस की गोली उसे ही चीर गई। ये किनका ख़ून बहा रहे हैं हम। हमारी चुनी हुई सरकारें इतनी क्रूर कैसे हो गईं। इस क़दर पत्थर सरकारें ? माफ़ कीजिये लेकिन ये निज़ाम शांति की भाषा नहीं समझ रहा। यह जनभावना उन्हें अपना निरादर लग रही है। वे नहीं समझ पा रहे हैं कि जनता आख़िर उन्हीं से उम्मीद भी करती है , जो वह हताश होगी तो कहाँ जाएगी ? इन दुःखद घटनाओं को देख यही लग रहा है कि अगर आप उत्तरप्रदेश में हैं तो प्रदर्शन में भाग ना लें।  बड़े प्रधान से क्या उम्मीद की जाए वे तो यही नहीं मान पा रहे हैं  कि नागरिकों में नागरिकता क़ानून का विरोध है।  वे तो पूरे मुद्दे को इस तरह सम्बधित कर रही हैं जैसे सड़कों पर उतरी यह जनता किसी अन्य राजनीतिक दल के बहकावे में आ गई  है। 

इन दुःखद घटनाओं को देख यही लग रहा है कि अगर आप उत्तरप्रदेश में हैं तो प्रदर्शन में भाग ना लें। बड़े प्रधान तो यही नहीं मान पा रहे हैं कि नागरिकों में नागरिकता क़ानून का विरोध है। वे तो पूरे मुद्दे को इस तरह सम्बोधित कर रहे हैं जैसे सड़कों पर उतरी यह जनता किसी अन्य राजनीतिक दल के बहकावे में आ गई अपराधी हो । उतरप्रदेश में इनकी तस्वीरें लगवाई जा रही हैं, इनाम घोषित किये जा रहे हैं। दूसरा कार्यकाल आख़िर अपने ही लोगों के प्रति इतना सख्त क्यों? 



P S: जो हक़ीक़त में जनता के मनोभावों की क़द्र होती तो यूं बिना कोई वक्त लिए NRC की जगह NPR नहीं आ जाता।



टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-2019) को "शब्दों का मोल" (चर्चा अंक-3562)  पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 
    ….
    -अनीता लागुरी 'अनु '

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