मेरा बेटा पाकिस्तानी नहीं है-तवलीन सिंह

आतिश तासीर  तस्वीर साभार इंडिया टुडे 

तवलीन सिंह, पत्रकार 

वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह का इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में प्रकाशित लेख पढ़ते हुए हैरानी भी होती है और दुःख भी । हैरानी इसलिये  कि एक अख़बारनवीस को इतना डरा हुआ क्यों होना चाहिए और दुःख इस बात का कि पत्रकार की क़लम से माँ का आहत हृदय बोल रहा था। उनके बेटे आतिश तासीर ने चुनाव से ठीक पहले एक लेख क्या लिखा सरकार ने उन्हें भारतीय मानने से ही इनकार कर दिया। सरकार से असहमत आवाज़ को चुनौती देने  का यह मामला अंतरराष्ट्रीय इसलिए बन भी बन गया है  क्योंकि आतिश का जन्म लंदन में हुआ, पिता सलमान तासीर पाकिस्तानी थे तो माँ हिंदुस्तानी। .. और  इंडियाज़ डिवाइडर इन चीफ शीर्षक से उनकी एक कवर स्टोरी  अमेरिका की टाइम मैगज़ीन में  प्रकाशित हुई थी और शायद इसी के बाद भारत सरकार का उनके प्रति देखने का नज़रिया भी  बदल गया। यह स्टोरी  ठीक आम चुनाव से पहले प्रकाशित हुई थी, इसलिए  ऐसा मानने में किसी को शुबहा नहीं है कि यह द्वेषभाव के चलते ही हुआ हो । 
                  सरकार का कहना है कि आतिश ने यह तथ्य छिपाया है कि उनके पिता पाकिस्तानी हैं और नागरिकता अधिनियम (1955) के तहत उन्हें OCI कार्ड इशू नहीं किया जा सकता । जिनके माता-पिता पाकिस्तानी हों  उन्हें OCI यानी ओवरसीज सिटिजनशिप  ऑफ़ इंडिया नहीं मिल सकती । आतिश का मानना है कि उन्हें जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। माँ तवलीन सिंह की तकलीफ़ यह है कि उन्होंने अकेले ही बेटे की परवरिश की है और उनकी बहन और दोस्तों ने आतिश को कपड़े और अन्य ज़रुरत की चीज़ें मुहैया न  कराई होती तो ज़िन्दगी बहुत मुश्किल होती । वह बहुत कठिन  समय था जब वे सलमान तासीर  से सारे सम्बन्ध तोड़ भारत आ गईं थीं । सलमान पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गवर्नर रहे हैं।  अपने  लेख में तवलीन सिंह एम जे अकबर का  भी ज़िक्र करती हैं जिन्होंने उन्हें  उस मुश्किल दौर में टेलीग्राफ अख़बार में नौकरी दी। अपनी बहन और सोनिया गांधी  का भी जो उनके बेटे को अच्छे कपड़े तोहफ़े में देतीं थीं। यह सब दोस्ती में था लेकिन तवलीन सिंह ने अफ़सोस के साथ  लिखा है कि पिछले पांच बरसों से मैंने  सरकार का खुला समर्थन किया और बदले में सरकार ने मेरे बेटे को ही देश निकाला दे दिया। 

        सवाल उठता है कि क्या वे अपेक्षा कर रहीं थीं की उनके इस बेहिसाब समर्थन के एवज़ में  बेटे की बख्शीश हो जाती ? वे समर्थन कर रहीं थीं बावजूद इसके कि वे असहमत थीं ? अब वे असहमत हो रहीं हैं क्योंकि बात उनके बेटे पर आई है ? जवाब उनके 39 साल के बेटे की बातों में मिलता है कि पहले मेरी माँ सरकार पर मेरे रवैय्ये पर मुझसे इत्तेफाक नहीं  रखती  थीं पर अब वे मेरे समर्थन में हैं।  काश यह उन्होंने पहले समझा होता। तवलीन ने यह भी  लिखा है कि इस मामले में मैंने कई बार प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के दफ़्तर  बात करने की कोशिश की लेकिन मुझसे बात नहीं की गई, मैं समझ गई की ऐसा उच्च पदों पर बैठे लोग ही नहीं चाह रहे हैं। मुझे तो सब ट्विटर से मालूम हुआ। मैं कोर्ट भी  जा  सकती  हूँ लेकिन वहां मसले  बरसों बरस लेते हैं। मैं दस साल तक शक्तिशाली  भारत सरकार से नहीं लड़ सकती। और जब मैं यह लिख रही हूँ  दिल उन लोगों  के लिए बैठा जाता है जिन्हे गृहमंत्री  दीमक कहते हैं जो भारत  के नागरिक हैं  जो अपनी  बाकी ज़िन्दगी डिटेंशन सेंटर्स में काटने को मजबूर हैं। जब मैं ही क़ानूनी लड़ाई लड़ने का साहस नहीं जुटा पा  रही तो वे कैसे कर पाएंगे ? मेरे बेटे के साथ गलत नहीं बल्कि  बुरा हुआ है और ऐसा ही उन गरीबों के साथ जो अपनी नागरिकता साबित करने में नाक़ाम होते  हैं। उन्हें बेहद तकलीफ़ है कि सरकार उनके बेटे को पाकिस्तानी कह रही हैं क्योंकि भारत में यह गाली से कम नहीं है और यह  बात भी कोई मायने नहीं रखती  कि आतिश के पिता  आज़ादी से पहले के भारत में जन्में थे तभी तो अपने ट्वीट में भी लिखती हैं- मेरा बेटा पाकिस्तानी नहीं है। 
ज़ाहिर है तवलीन सिंह  दुःखी हैं और उसकी जायज़ वजह भी उनके पास है। अपने दुःख में वे यहाँ तक कह  जाती हैं कि कोई भी सिंगल मदर होकर बच्चों  को पलने का जोखिम न ले। बहरहाल आतिश के पिता का इंतकाल 2011  में हो चुका है। एक पत्रकार और माँ होने के नाते मेरा इतना कहना ज़रूर है कि हालात आपको डरा सकते हैं ,आपकी क़लम को  बोथरा कर सकते हैं लेकिन अंध समर्थन के लिए बाध्य नहीं कर सकते तभी आपको  लिखना पड़ता है कि मुझे यह लिखते हुए यकीन नहीं हो रहा है की जिस प्रधानमंत्री का मैं खुला समर्थन करती आई  उन्होंने ही मेरे बेटे को देश निकाला दे दिया है। तवलीन को यही करना पड़ा है। प्रेम,शादी, तलाक़ या अकेले बच्चे को पालना इन सब के लिए किसी को अफ़सोस नहीं बल्कि फ़ख़्र करना चाहिए लेकिन तकलीफ़ और दर्द को समझने के लिए हमेशा अपने पैरों में बिवाई फटने का इंतज़ार तो कम अज़  कम नहीं करना चाहिए। पीर तो देखकर भी महसूस की जा सकती है । आतिश के पास यह तासीर है लेकिन पत्रकार महोदया ने अब समझा है। 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया।पर तवलीन को इस तरह की छटपटाहट तो बिल्कुल नहीं दिखानी चाहिए।ये भी एक तरह की मौका परस्ती ही है।

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  2. बहुत बढ़िया।पर तवलीन को इस तरह की छटपटाहट तो बिल्कुल नहीं दिखानी चाहिए।ये भी एक तरह की मौका परस्ती ही है।

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  3. Finally your comment is here😊
    yah chatpahat hi chounkanewali hai..

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