New zeal from new zealand ये हैं प्रधानमंत्री माँ


https://www.cbsnews.com/news/jacidna-ardern-new-baby-neve-today-2018-06-24/
इस वक़्त यह तस्वीर मुझे दुनिया की  सबसे प्यारी तस्वीर मालूम होती है। इसलिए नहीं कि यह जोड़ा बहुत  खूबसूरत है या कि अपनी मासूम नवजात बिटिया को थामें यह माँ जो न्यूज़ीलैण्ड देश की प्रधानमंत्री भी हैं खुल कर मुस्कुरा रही हैं। इसलिए भी नहीं वे छह हफ्ते बाद फिर काम पर लौटेंगी तब तक  उनका काम उप -प्रधानमंत्री के हवाले होगा। मुझे यह तस्वीर पसंद है क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी का का पहला नाम नेवे रखा है जिसका वहां की आदिवासी बोली में अर्थ है चमकीला, प्रखर। .... और नाम का अगला हिस्सा है ते अरोहा जिसके मायने है प्रेम। इसलिए भी  क्योंकि वे अगस्त 2017  में न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री बनीं और अक्टूबर में उन्होंने अपनी प्रग्नेंसी ज़ाहिर की और कोई हाय -तौबा नहीं मची। और पसंद इसलिए भी कि उनके साथी और उन्होंने अस्पताल छोड़ते हुए एक छोटी-सी  प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि एक दिन ऐसा आएगा जब देश सँभालते हुए माँ बनना कोई बड़ी घटना नहीं रह जाएगी। उन्होंने कहा कि वह बेहतर समय तब होगा जब इन बच्चों  के लिए  करिअर चुनने और परिवार बढ़ाने का  फैसले उनका अपना  होगा। लड़कियां अपनी ख़ुशी से अपने फैसले  कर सकेंगी।
  वाकई कितनी सकारात्मक और सहज बात इस तस्वीर के साथ आई है। क्या एशियाई मुल्कों में इस पद पर अपनी गर्भावस्था को इतने सहज भाव से ले पाना संभव है । पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने जब 1990 में  बेटी को जन्म दिया था तब वे पूरे समय दफ्तर इस भाव के साथ जाती रहीं कि वे गर्भवती हैं तो भी वे ज़ाहिर नहीं करने वाली हैं और  पुरुषों की तरह ही सभी कामकाज संभाल सकती  हैं। पूरी कोशिश रही कि उनकी यह अवस्था ज़ाहिर न होऔर कहीं इसे उनकी कमज़ोरी ना मान लिया जाए। यही कोशिश हमारी भी होती है आज भी। सरकारें मातृत्व के लिए छुट्टियां दे रह हैं लेकिन क्या निजी और असंगठित क्षेत्रों की महिलों का इसका लाभ मिल रहा है। नहीं मिल रहा ,  इसी कारण उन्हें काम से हाथ धोना पड़  रहा है।   उन्हें निकला जा रहा है। एक सर्वेखण में हाल ही यह आशंका व्यक्त की गई है लगभग एक करोड़ महिलाओं को जॉब्स से निकला गया है। 
         क्या एक सामान्य कामकाजी स्त्री की गर्भावस्था को भी संस्थान और उसके साथी सहजता और सकारात्मकता के साथ ले पाते हैं? क्या उसकी गर्भावस्था को भावी नागरिक के जन्म के बतौर देखा जाकर उसे वे तमाम सुविधाएं और वातावरण मुहैया कराया  जाता है जो एक स्वस्थ बच्चे के जन्म के किए ज़रूरी है। जब हम खुद से सवाल करते हैं तो लगता है कि  बेहतर है हम इस अवस्था में ब्रेक लें या फिर नौकरी छोड़  दें। मुझे लगता  था कि घर के काम और गर्भावस्था के बीच आप भले ही सहज हों लेकिन शेष दनिया उतनी सहज नहीं रह पाती। कहींअतिरिक्त सहानुभूति है तो कहीं बेरुखी । ऐसे करार भी हैं जहाँ  लड़कियों से कहा जाता  हैं कि अभी शादी नहीं और इस करार अवधि में बच्चा भी नहीं।  इस कुदरती तोहफे के प्रति हम उतने संवेदनशील नहीं होते। लड़कियां भी फिर इसी राह पर हैं कि जॉब पहले, शादी-बच्चे सब बाद में जो वक़्त मिला तो। 
       यह कतई ठीक नहीं है।  एक बेहतर देश में बेहतर  नागरिक तभी होंगे जब माँ सहज और सम्मानित होगी। यह सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है कि गर्भावस्था और काम दोनों साथ-साथ चलें । राजनीति में महिला विधायक, सांसद,मंत्री सभी युवा उम्र में ही सक्रिय हों जो परिवार और देश दोनों सहज तरीके से चला सकें। आसाम की विधायक अंगूरलता डेका ने पिछले साल अपनी  नन्हीं  बच्ची के लिए एक ब्रैस्ट फीडिंग रूम की मांग की थी। उन्हें छुट्टियां नहीं चाहिए थीं, वे काम पर रहते हुए अपनी बच्ची की देखभाल  करना चाहती थीं। ऑस्ट्रेलिया  की  सेनेटर लेरेसा वाटर की संसद में अपने बच्चे को दूध पिलाने की तस्वीरें भी वायरल हुई थीं। इन सशक्त महिलाओं का मकसद एक ही है, परिवार की  ज़िम्मेदारी के साथ देश की ज़िम्मेदारी। बतौर समाज हमारी कमतरी देखिये हम इसे भी पूरा करने में नाकाम हैं। किसे परवाह है मातृशक्ति की। राजनीति वोट के गणित में उलझी हुई है और समाज उसी उलझी राजनीति  में। फिर भी मुझे न्यूज़ीलैण्ड की प्रधानमंत्री jacinda ardern के परिवार की यह तस्वीर पसंद है  क्योंकि यही संतुलन सारी दुनिया की स्त्रियों की तमन्ना है।  






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