New zeal from new zealand ये हैं प्रधानमंत्री माँ
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https://www.cbsnews.com/news/jacidna-ardern-new-baby-neve-today-2018-06-24/ |
वाकई कितनी सकारात्मक और सहज बात इस तस्वीर के साथ आई है। क्या एशियाई मुल्कों में इस पद पर अपनी गर्भावस्था को इतने सहज भाव से ले पाना संभव है । पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने जब 1990 में बेटी को जन्म दिया था तब वे पूरे समय दफ्तर इस भाव के साथ जाती रहीं कि वे गर्भवती हैं तो भी वे ज़ाहिर नहीं करने वाली हैं और पुरुषों की तरह ही सभी कामकाज संभाल सकती हैं। पूरी कोशिश रही कि उनकी यह अवस्था ज़ाहिर न होऔर कहीं इसे उनकी कमज़ोरी ना मान लिया जाए। यही कोशिश हमारी भी होती है आज भी। सरकारें मातृत्व के लिए छुट्टियां दे रह हैं लेकिन क्या निजी और असंगठित क्षेत्रों की महिलों का इसका लाभ मिल रहा है। नहीं मिल रहा , इसी कारण उन्हें काम से हाथ धोना पड़ रहा है। उन्हें निकला जा रहा है। एक सर्वेखण में हाल ही यह आशंका व्यक्त की गई है लगभग एक करोड़ महिलाओं को जॉब्स से निकला गया है।
क्या एक सामान्य कामकाजी स्त्री की गर्भावस्था को भी संस्थान और उसके साथी सहजता और सकारात्मकता के साथ ले पाते हैं? क्या उसकी गर्भावस्था को भावी नागरिक के जन्म के बतौर देखा जाकर उसे वे तमाम सुविधाएं और वातावरण मुहैया कराया जाता है जो एक स्वस्थ बच्चे के जन्म के किए ज़रूरी है। जब हम खुद से सवाल करते हैं तो लगता है कि बेहतर है हम इस अवस्था में ब्रेक लें या फिर नौकरी छोड़ दें। मुझे लगता था कि घर के काम और गर्भावस्था के बीच आप भले ही सहज हों लेकिन शेष दनिया उतनी सहज नहीं रह पाती। कहींअतिरिक्त सहानुभूति है तो कहीं बेरुखी । ऐसे करार भी हैं जहाँ लड़कियों से कहा जाता हैं कि अभी शादी नहीं और इस करार अवधि में बच्चा भी नहीं। इस कुदरती तोहफे के प्रति हम उतने संवेदनशील नहीं होते। लड़कियां भी फिर इसी राह पर हैं कि जॉब पहले, शादी-बच्चे सब बाद में जो वक़्त मिला तो।
यह कतई ठीक नहीं है। एक बेहतर देश में बेहतर नागरिक तभी होंगे जब माँ सहज और सम्मानित होगी। यह सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है कि गर्भावस्था और काम दोनों साथ-साथ चलें । राजनीति में महिला विधायक, सांसद,मंत्री सभी युवा उम्र में ही सक्रिय हों जो परिवार और देश दोनों सहज तरीके से चला सकें। आसाम की विधायक अंगूरलता डेका ने पिछले साल अपनी नन्हीं बच्ची के लिए एक ब्रैस्ट फीडिंग रूम की मांग की थी। उन्हें छुट्टियां नहीं चाहिए थीं, वे काम पर रहते हुए अपनी बच्ची की देखभाल करना चाहती थीं। ऑस्ट्रेलिया की सेनेटर लेरेसा वाटर की संसद में अपने बच्चे को दूध पिलाने की तस्वीरें भी वायरल हुई थीं। इन सशक्त महिलाओं का मकसद एक ही है, परिवार की ज़िम्मेदारी के साथ देश की ज़िम्मेदारी। बतौर समाज हमारी कमतरी देखिये हम इसे भी पूरा करने में नाकाम हैं। किसे परवाह है मातृशक्ति की। राजनीति वोट के गणित में उलझी हुई है और समाज उसी उलझी राजनीति में। फिर भी मुझे न्यूज़ीलैण्ड की प्रधानमंत्री jacinda ardern के परिवार की यह तस्वीर पसंद है क्योंकि यही संतुलन सारी दुनिया की स्त्रियों की तमन्ना है।
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