गुरमेहर जिस पर गुरु की कृपा हो


गुरमेहर यानी वह जिस पर गुरु की कृपा हो। लेडी श्री राम कॉलेज की छात्रा गुरमेहर से बातचीत के लिए जब तर्क खत्म हुुुुए तो उन्हें सबक सिखाने के लिए दुष्कर्म की धमकी दी गई।  तर्क से बात नहीं बनीं तो दुष्कर्म की धमकी देने को किसी भी नजरिए से कैसे सही ठहराया जा सकता है। वे यह भी कहती हैं कि पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा  है मेरे पिता को। जवाब में उन्हें कहा गया कि यदि उनके पिता जिन्दा होते तो  शर्मसार होते।  फिर कौर कहती हैं मेरे पिता को मुझ पर फख्र होता कि मैं अपने साथियों के साथ आवाज बुलंद कर रही हूं।
क्या वाकई किसी देश के लिए नर्म रवैया रखना देशद्रोह है और क्यों जब बात तर्क से नहीं बनती तो दुष्कर्म का हवाला देकर सबक सीखाने का पैंतरा अपनाया जाता है? दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब पूर्व जर्मनी और पश्चिम जर्मनी के बीच की दीवार टूट सकती है, अमरिका जापान नए समीकरण बना सकते हैं, फ्रांस जर्मनी भी मिलकर नई इबारत लिख सकते हैं  तो ये दो देश क्यों नहीं? कहीं सियासत ही इसकी जड़ में तो नहीं?
   
कल्पना कीजिए कि ऐसे ही जैसे गुरमेहर को ट्रोल किया गया कोई भारत माता की जय के नारे बोलते हुए उनका कुर्ता  फाड़ दे, पत्थर फेंके, कार के शीशे तोड़ दे क्योंकी उन्हीं की पार्टी ने कश्मीर में उस पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना रखी है जिसने पत्थर बाजों को रिहा कर दिया। यह भी कहा कि बुरहान को किसी दूसरी तरह से टेकल किया जा सकता था, आतंकवादियों के जनाजे में शामिल हुए हैं , घर पर शोक प्रकट करने गए हैं तब? क्या यह सही होगा ? जाहिर है प्रजातंत्र में इन सबकी कोई जगह नहीं । यहां बात होनी चाहिए। विचार पर विचार आने चाहिए। तर्क से विवेक से होश ओ हवास के साथ।
शहीद की बेटी तो और भी सम्मानित हो जाती हैं । केवल इसलिए कि उनके विचार आपसे अलग हैं उनकी देशभक्ति की परिभाषा आपसे अलग है वे दुष्कर्म की हकदार हो जाती हैं? मंत्री महोदय बजाय दुष्कर्म का विरोध करने के यह कहते हैं कि किसने इनके दिमाग में जहर भरा है। परेशान गुरमेहर ने फिलहाल दिल्ली छोड़ दिया है। वे अपने घर जालंधर लौट गईं हैं। एक लड़की को हम इतना ही साहस दे पाते हैं कि अगर वह कुछ बोले तो हम उसके वजूद को ही छिन्न-भिन्न कर दें? क्यों एक पल को भी हम यह नहीं सोच पाते कि जिस बेटी ने अपना पिता खोया है, इसके बावजूद वह शांति का संदेश देना चाह रही है तो कोई कारण रहा होगा? हम सिर्फ अपनी नफरत को  हवा देते रहना चाहते हैं? क्या यह बात हमें जरा भी बेचैन नहीं करती?
       गुरमेहर कौर की मां राजविंदर कौर की बात सुनिये  ''मैं कभी नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी को कोई बेचारी बच्ची कहे. मैं इस बात को लेकर निश्चिंत थी कि मेरे बच्चे ख़ुद को असहाय महसूस नहीं करेंगे. इनके पिता नहीं रहे लेकिन ये पीड़ित नहीं हैं. मेरे पति कश्मीर के कुपवाड़ा में नियुक्त थे. वह गुल से फोन पर बात करते थे. तब मेरी बेटी ने बोलना शुरू ही किया था.'' राजविंदर ने कहा, ''हमलोगों ने उसे हेलो की जगह वंदे मातरम कहना सिखाया था. तब उसे पता रहता था कि फ़ोन पर उसके पिता हैं. वह हिन्दी फ़िल्म सोल्जर का सोल्जर-सोल्जर गाना गाती थी. उसकी आवाज़ में वह गाना सुनना काफी अच्छा लगता था. जब मेरे पति मुझे चिट्ठी लिखते थे तो वह गुल के लिए एक अलग पन्ने पर चित्र बनाकर भेजते थे.''''जब वह छह साल की थी तो मैंने महसूस किया कि उसके मन में काफी ग़ुस्सा है।  मेरठ में उसने एक बुर्के वाली महिला पर हमला कर दिया था जो माहौल था उसमें उसके मन में यह बात पैठ गई थी कि मुसलमान और पाकिस्तान ने उसके पिता को मारा है।  फिर मैंने उसे समझाना शुरू किया। मैंने उसे बताया कि उसके पिता को युद्ध ने मारा है।  वह उन्हीं बच्चों में से एक है जो अपने माता-पिता को युद्ध में खो देते हैं।  मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी प्यार के बजाय नफरत को दिल रख बड़ी हो। ''
उधर क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने भी ट्वीट कर दिया कि तिहरा शतक मैंने नहीं मारा था मेरे बल्ले ने मारा था। एक्टर रणदीप हुड्डा ने ट्वीट में स्माइलीज बिखेर दिए। अब हुड्डा कह रहे हैं मैं तो सेहवाग के जोक पर हंसा था।  उधर रामजस कॉलेज के प्राचार्य का कहना है कि उनका दिल रो रहा है। दरअसल घटनाक्रम इसी कॉलेज से ही प्रारंभ होता है जब एबीवीपी को यह लगा कि यहां छात्र उमर खालिद भी बोलने वाले हैं और पत्थरबाजी हुई।
 गुरमेहर के दादा कंवलजीत सिंह ने कहा है कि गुरमेहर एक बच्ची है और अब ये सब ड्रामा बंद होना चाहिए। सिंह ने कहा कि राजनेताओं को इस बारे में अब बयान देने से बचना चाहिए। सही कह रहे हैं दादाजी। पोती के लिए उनकी चिंता को सर्वाेपरी मानना चाहिए। वे सजा के हकदार हैं जो यूं बेटियों को अपमानित करते हैं। इस हरकत को राजनीतिक नजरिए से देखने के बजाय बेहद शर्मनाक हरकत की तरह देखना चाहिए। अगर हम वाकई बेटियों की चिंता करते हैं तो गुनाहगारों को माफी नहीं मिलनी चाहिए। तभी बेटियों का आत्मसम्मान भी बचा रहेगा।

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