विरह में जलने और यूं जलने में ज़मीन आसमान का फर्क है

पूर्व से पश्चिम तक हवाएं कुछ गर्म हैं। सर्द मौसम में ये गर्म हवाएं क्योंकर चल रही हैं? क्यों सब निषेध या ना कहकर ही अपनी मुश्किलों को आसान करना चाहते हैं? क्यों हम अभिव्यक्ति  को थप्पड़ मार रोकना चाहते हैं? मान लिया कि आपको घणा एतराज है कि कोई फिल्मकार रानी पद्मावती को क्रूर अलाउद्दीन खिलजी के सपने में दिखाकर  गलती कर रहा है तो आप थप्पड़ जडऩे के अधिकारी हो जाते हैं? फिर जब थप्पड़ खाने के बाद फिल्मकार यह कहता है कि मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा जिससे आपको तकलीफ पहुंचे तो क्या वाकई बहुत खुश हो जाने वाली बात होगी? जिस मरुधरा के  रंग पूरी दुनिया को आकर्षित करते हैं वहां  क्यों इकरंगी और ऊब से भरी दुनिया की पैरवी हो रही है?
अगर किसी ने ऐसी ही रोक सूफी संत कवि मलिक मोहम्मद जायसी पर लगाई होती तो क्या हम पद्मावत का सुदंर काव्य पढ़ पाते? इसी महाकाव्य में रानी पद्मावती के सौंदर्य और राजा रत्नसेन के प्रेम की दिव्यता का भी उल्लेख है। जायसी ने पद्मावत में इतिहास और कल्पना, लौकिक और अलौकिक का ऐसा सुंदर सम्मिश्रण किया है कि कोई दूसरी कथा इस  ऊंचाई तक नहीं पहुंच सकी है। जायसी के काव्य में रानी पद्मावती सिंहल देश यानी श्रीलंका की राजकुमारी है जिसकी तलाश में  रावल रतन सिंह  अपनी पत्नी नागमती  को छोड़ चल देते हैं। उन्हें पद्मावती का बखान एक तोते हीरामन  से सुना था। जायसी ने नागमती विरह को भी काव्य के जरिए जो उपमाएं दी हैं वैसा दुनिया के किसी साहित्य में आसानी से देखने को नहीं मिलता। विरह प्रेम का ही दूसरा नाम है।  कुहुकि कुहुकि जस कोइल रोई। रक्त आँसु घुंघुची बन बोई।।” नागमती की आँखों से आँसू नहींखून के बूँदें टपक रही हैं। नागमती दुख के उस पूरे साल का दर्द रचती हैं जब रतनसिंह पद्मावती को पाने के लिए श्रीलंका की यात्रा पर जाते हैं।
   जायसी के मुताबिक पद्मावती जब उनसे मिलने के लिये एक देवालय में आई, उन्हें देखकर वह बेहोश हो गए और पद्मावती उन्हे अचेत छोड़कर चली गर्इं। चेत में आने पर रतनसिंह  बहुत दुखी हुए। जाते समय पद्मावती ने उसके हृदय पर चंदन से यह लिख दिया था कि उसे वह तब पा सकेंगे, जब वह सात आकाशों (जैसे ऊंचे) सिंहलगढ़ पर चढ़कर आएंगे। राजा को जब यह सूचना मिली तो उन्होंने रतनसिंह को फांसी देने का आदेश दिया लेकिन जब उन्हें रतनसिंह की  हकीकत मालूम हुई तब पदमावती का विवाह उनके साथ कर दिया।
अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में रत्नसेन  के विरोधि पंडित पद्मावती के सौंदर्य का बखान करते हैं और खिलजी उसे पाने के लिए लालायित हो जाता है। चित्तौड़ पर चढ़ाई के तमाम प्रयास विफल रहते हैं तब वह रतनसेन से संधि का धोखा रचता है। खिलजी उन्हें बंदी बना दिल्ली लौटता है। चित्तौड़ में पद्मावती अत्यंत दुखी होकर पति को मुक्त कराने के लिये अपने सामंतों गोरा और बादल के घर जाती हैं। वेे रतन सिंह को आजाद कराने का बीड़ा लेते हैं। सोलह सौ डोलियों में सैनिकों को रख वे दिल्ली की ओर चल पड़ते हैं। वहां पहुंचकर संदेश भेजते हैं कि पद्मावती  दासियोंं के साथ सुल्तान की सेवा में आईं है और आखिरी बार अपने पति रतनसेन से मिलने की आज्ञा चाहती हैं। सुल्तान की आज्ञा के बाद डोलियों में बैठे सैनिक रतनसिंह  को बेडयि़ों से मुक्त करा भाग निकलते हैं। रतन सिंह राजपूत सुरक्षित चित्तौड़ पहुंच जाते हैं। पद्मावती बताजी है कि उनकी गैरमौजूदगी में कुंभलनेर के राजा देवपाल ने उन्हें प्रेम-प्रस्ताव भेजा था। राजा इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते और लड़ाई में देवपाल को मार खुद भी जिंदा नहीं रह पाते। नागमती और पद्मावती जौहर कर लेती हैं। अगर जो यह कथा सच है तो तकलीफ जौहर से होती है। क्यों कोई प्रेम में यूं खुद को जलाए? विरह में जलने और यूं जलने में ज़मीन आसमान का फर्क है ये दौर वाकई बेहतर है क्योंकि संविधान इसे गुनाह कहता है।
कविता- कहानी कहने वाले का अपमान क्यों होना चाहिए ?  सिर्फ इसलिए की इससे हमारी आस्था डिगती है। एक फिल्मकार  की क्या बिसात कि वह जनमानस में मौजूद रानी पद्मिनी के सम्मान को डिगा सके।  जो रानी पद्मिनी के नाम पर हमें अपना हितस्वार्थ देखना है तो बात और है। हमारे ध्येय वाक्य ही जब पधारो म्हारे देस से जाने कब क्या दिख जाए हो जाएगा   तो व्यवहार में शामिल भी होगा ही। 

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