दुनिया की पहली स्मार्ट सिटी मुअन जो दड़ो


 चलते हैं अपनी जड़ों की ओर। कहीं दूर नहीं जाना बस पास ही है राजस्थान से लगा हुआ सिंध। वहीं है मुअन जो दड़ो यानी मुर्दों का टीला। सिंधी भाषा में मुअन यानी मरे हुए और दड़ा यानी टीला। कोई क्या दावा करेगा स्मार्ट सिटी बनाने का! हमारे पुरखे तो पांच हजार साल पहले ही सुनियोजित नागर व्यवस्था को जी चुके हैं।



को जी चुके हैं।


  सिंध कभी दूर नहीं था हमसे। ना राजस्थानियों से ना उन सिंधियों के दिलों से जो विभाजन के बाद पाकिस्तान छोड़कर हिंदुस्तान आ गए थे। पश्चिमी राजस्थान पड़ोस के सिंध से बहुत कुछ साझा करता है। पहनावा, घरों की बनावट, खानपान, ब्याह-शादी के रस्म-ओ-रिवाज और इनमें गाए जाने वाले लाडे। लाडे यानी वे गीत जो शादी से एक माह पहले ही गाए जाते थे। सिंधी घरों में आज भी गाए जाते हैं। सिंधी स्त्रियों की वेशभूषा में भी चटख रंग का कढ़ाईदार घाघरा और कांच की जरदोजी वाली कुर्ती शामिल है। गहने लाख और चांदी के। दादाजी अकसर इस पहनावे का जिक्र करते थे और उसे 'पड़ो-कोटी' कहते थे। पुरखों के सिंध से आने के कारण मुअन जो दड़ो और हड़प्पा नाम से हमेशा ही लगाव रहा। यहां-वहां से मिली जानकारियों ने हमेशा एक 'कनेक्ट-सा'बनाए रखा लेकिन हाल ही जब पत्रकार ओम थानवी  की किताब मुअन जो दड़ो पढऩे में आई तो लगा जैसे एक स्वप्निल यात्रा को जी लिया हो। विश्व पर्यटन दिवस पर दुनिया की इस ऐतिहासिक धरोहर की शब्द यात्रा।

कहां है मुअन जो दड़ो

सिंध (अब पाकिस्तान)में है कराची और कराची से 440 किमी दूर लाड़काणा में है मुअन जो दड़ो।  यहां सिंधी जुबां में एक कहावत प्रचलित है 'हुजैई नाणो तो घुम लाड़काणो' यानी पैसा है, दम है तो लाड़काणा घूमो। विभाजन के बाद जब सिंधी पूरे देश में रोजगार की आस में बस गए तब वे एकदूसरे से कैसे परिचय प्राप्त करते थे यह जानना रोचक होगा। मेरे दादाजी नवाबशाह जिले के कंड्यारे से आए थे। वे बातचीत में या ब्याह का रिश्ता जोडऩे से पहले यही पूछते कि आप सिंध में कहां के हैं। कोई कहता लाड़काणा, कोई जेकमाबाद कोई हैदराबाद और फिर रिश्तों के तार इस आधार पर जुड़ते कि किसके मन में किस क्षेत्र की कैसी पहचान है। लाड़काणा से अट्ठाइस किलोमीटर दूर है यह ऐतिहासिक सभ्यता जिसे यूनेस्को ने संरक्षित घोषित किया हुआ है। वह सभ्यता जिसने दुनिया के सामने भारत को अति प्राचीन और सभ्य समाज के दावे को प्रमाणित कर दिया। ऐसा वैज्ञानिक आधार कि जब यूरोप के लोग जानवरों की खाल ओढ़ा करते और अमेरिका आदिम जातियों का इलाका था सिंधु घाटी के लोग बहुत विकसित समाज बनकर जी रहे थे। यह तबाह कै से हुआ बाढ़ से या सूखे से यह अब भी पूरी तरह मालूम नहीं

पांच हजार साल पहले की स्मार्ट सिटी

सिंधु नदी के किनारे पनपी यह दुनिया की पहली नागर सभ्यता थी। आसुदा और बेहद करीने की। खेती विकसित थी और बाशिंदे दूर-दूर तक व्यवसाय के लिए जाते थे। व्यापार आज भी सिंधियों की विशेषता बना हुआ है। सिंधी दुनिया के हर कोने में अपने पुख्ता व्यवसाय के साथ मिलेंगे। इतने विनम्र कि कोई अपशब्द भी कह दे तो पलट के वे ऐसा नहीं करते। व्यापार का यही मूल मंत्र भी है शायद। घाटी के लोग माप-तौल जानते थे। वह साक्षर सभ्यता थी। लिपी थी लेकिन वह बूझी नहीं जा सकी है। मुअन जो दड़ो और हड़प्पा में तांबे का उपयोग होता था। लौह युग बाद का है। हड़प्पा के अवशेष ज्यादा नहीं मिलत।े रेल लाइन बिछाने के दौरान ये विकास की भेंट चढ़ गए। खुदाई से पहले ही ईंट चोरों ने खोद डाला।

पक्की ईंटों का मुअन जो दड़ो

यह घाटी की राजधानी रहा होगा। दो सौ हेक्टेयर के इस क्षेत्र की आबादी कोई पचासी हजार। उस समय का महानगर टीलों पर बसा था। ये टीले बनाए गए थे। ईंटों से ऊंचे किए गए टीले ताकि सिंधु नदी का पानी वहां तक आ जाए तो शहर डूब में ना आए। आजकल बांध बनाकर शहर डुबोए जाते हैं। मध्यप्रदेश में हरसूद ऐसा शहर था जिसे विकास के नाम पर डुबो दिया गया। मुअन जो दड़ो के खंडहर इतने तो आबाद हैं कि इनकी गलियों में घूमा जा सकता है। सामान तो संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहा है लेकिन शहर को कोई कहां ले जा सकता है। सबसे ऊंचे चबूतरे पर बौद्ध स्तूप है। यह सभ्यता के बिखरने के बाद एक ध्वस्त टीले पर बनाया गया था। लगभग ढाई हजार साल पहले। पश्चिम में प्रशासनिक इमारतें, सभा भवन, ज्ञानशाला और कोठार हैं। एक आनुष्ठानिक स्नानागार भी है जो बेहतर हालात में है। सड़कें सीधी हैं या फिर आड़ी। एक तरफ उच्च वर्ग की बस्ती है तो दूसरी ओर कामगारों की। पक्की ईंटे इस सभ्यता की सबसे बड़ी खासियत है। शहर की मुख्य सड़क बहुत लंबी है। अब खाली आधा मील बची है। दो बैलगाडिय़ां एक साथ गुजर सकती हंै। सड़क के दोनों ओर घर हैं। कोई घर सड़क पर नहीं खुलता। प्रवेश अंदर गलियों से है। चंडीगढ़ भी ऐसा ही शहर है। हर घर में एक बाथरूम है। बंद, पक्की नालियां सड़क के दोनों ओर हैं जिनका संबंध स्नानघर से है। पानी की निकासी का श्रेष्ठ बंदोबस्त। हर घर में कुंआ है। कुंए का प्राचीन प्रमाण इसी सभ्यता सेें मिलता है।

कौन सी थी फसलें

यह खेतीहर और पशुपालक सभ्यता थी लेकिन घोड़े का उल्लेख नहीं मिलता है। पत्थर और तांबा खूब था। इन्हीं के उपकरण खेती में काम आते थे। मिस्र और सुमेर की सभ्यता में लकड़ी और चकमक का इस्तेमाल होता था। कपास, गेंहू, जौ सरसों और  चने की फसल के सबूत मिलेे हैं। बाजरा, ज्वार, रागी भी होती थी। फलों में खरबूजा, खजूर, अंगूर और बेर। यहां दुनिया का सबसे पुराना सूती कपड़े का टुकड़ा भी मिला है। खुदाई में तांबे, कांसे और सोने की सुईयां भी मिली है। इस महान संस्कृति का सौंदर्य बोध अद्भुद था। यह धर्मपोषित या राजपोषित ना होकर समाज पोषित था।

नर्तकी और नरेश

यह एक कांसे की प्रतिमा है जो साढ़े दस सेंटीमीटर लंबी है। इसे 1926 में खोजा गया। इस प्रतिमा के बारे में अंग्रेज पुरातत्वविद मार्टिमर बीलर कहते हैं 'यह मेरी पसंदीदा मूर्ति है। यह पंद्रह साल की एक लड़की है जिसका आत्मविश्वास बस देखते ही बनता है। दूसरी मूर्ति नरेश की है हालांकि ऐसे कोई प्रमाण नहीं कि किसी राजा ने मुअन जो दड़ो पर राज किया था। यह साढ़े सत्रह सेंटीमीटर की है। बाल पीछे की तरफ कंघे से किए गए हैं। मूंछ नहीं लेकिन दाढ़ी है। दोनों मूर्ति की आंखें बंद हैं। शैली बुद्ध और महावीर की मूर्तियों में मिलती है। जागते हुए भी थोड़ा खो जाना और खोकर भी थोड़ा जागे रहना।

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