अमृता की आन

सब इंस्पेक्टर अमृता सोलंकी जैसी कामकाजी महिलाओं को सलाम है जो फ़र्ज़ और कर्त्तवय की राह में कभी आत्मसम्मान कुर्बान नहीं करती।
लगता है यह लड़कियों के मुखर होने का समय है। वे हिम्मत बटोरने लगी हैं अपने सीनियर्स के अपमानजनक व्यवहार के खिलाफ। वे बोल रही हैं जज के बारे में, पत्रकार के बारे में और हाल ही एक मामला मध्य प्रदेश से आया है, जहां सेंधवा की पुलिसकर्मी अमृता सोलंकी ने अपने साथ हुए अन्याय का विरोध करते हुए न केवल इस्तीफा दिया, बल्कि फेसबुक पर मुहिम छेड़ दी है। तहलका पत्रकार के इस्तीफे से पहले का इस्तीफा है अमृता सोलंकी का। यहां अधिकारी ने उनका अपमान शब्दों से किया।
अमृता
मध्यप्रदेश के  राजगढ़ ज़िले के मलावर ठाने  में सब-इंस्पेक्टर हैं। बाइस नवंबर की रात वे  के ब्यावरा में ड्यूटी पर तैनात थीं। रात साढे़ बारह बजे एक बंद लालबत्ती का वाहन सामने से गुजरा । अमृता ने उसे रोका। वाहन में नरसिंहगढ़ के चुनाव पर्यवेक्षक थे। उन्होंने गुस्से से पूछा वाहन क्यों रोका? अमृता ने कहा मेरे अधिकारियों के निर्देश हैं कि लाल-पीली बत्ती की आड़ में कोई अवैध वाहन नहीं गुजर जाए। उन्होंने डांटकर कहा, अंधी हो क्या। दिखाई नहीं देता। सामने लिखा है ना मुख्य चुनाव पर्यवेक्षक। अमृता के कहने पर कि वाहन जानबूझ कर नहीं रोका गया, पर्यवेक्षक ने उनका नाम पूछा और कहा कि तेरे एसपी को बताऊंगा और नाराज होकर कहा कि पैसे देकर भरती हुई है क्या? तुझे अक्ल नहीं है, तू नौकरी के लायक नहीं है।
अमृता के इस्तीफे को हालांकि पुलिस विभाग ने स्वीकार नहीं किया हैै लेकिन इसी विभाग में उनके साढ़े तीन साल में दस तबादले हो चुके हैं।  वे एक दबंग सब-इंस्पेक्टर बतौर पहचानी जाती हैं और इस इलाके में भी उन्हें एक दलित व्यक्ति की हत्या के बाद पोस्टिंग दी गई थी। चुनौती बड़ी थी, क्योंकि थाने का घेराव कर लिया गया था, जनता को शक था कि दलित की हत्या थाने में हिरासत के दौरान हुई। अमृता जब बोलीं, तो कई साथी पुलिसकर्मियों ने भी अपने साथ हुए व्यवहार का खुलासा किया। दरअसल, मातहतों का अपने वरिष्ठों से टकराव कोई नया नहीं है, लेकिन ये कैसे वरिष्ठ हैं, जो अपने अधीनस्थों की ही अवमानना कर जाते हैं। जूनियर्स को वे कैसी सीख दे रहे हैं कि हमसे हमारी पहचान ही न पूछो? क्यों वे सलाम और साष्टांग दंडवत की अपेक्षा में होते हैं? क्या हो जाएगा यदि लाल बत्ती में बैठा अधिकारी पहले अपनी पहचान सहर्ष जाहिर करे, उसके बाद मातहत का सलाम कुबूल करे? हमारी दिक्कत है कि हम इन सब बातों को रुतबे से जोड़कर देखते हैं। देखा, मुझे ट्रेफिक हवलदार ने कैसे झुककर जाने दिया। देखा, मैंने जब एंट्री की, तो सामने वाले की हिम्मत ही नहीं हुई मेरा कार्ड देखने की। देखा, मैं पिछले तीन साल से ये मैचेज बिना किसी टिकट के देख रहा हूं। हमारी कोशिश होती है कि लोग हमें इस तरह जाने या माने। कल को इसी आड़ में कोई धमाका या हादसा हो गया तो? क्यों नहीं हम आगे रहकर जांच में सहयोग करते। जिस विकट समय काल में हम खडे़ हैं, वहां हर पल अपनी पहचान के कागजों के साथ रहना आपकी मजबूरी है। आप पहले एक नंबर हैं उसके बाद इंसान।
बहरहाल, लड़कियां अब मजबूरी के साथ नहीं, मजबूती के साथ मोर्चे पर हैं। वे अपमान की मुख़ालिफ़त कर रही हैं। वे जिस पद पर भी हैं, आत्मसम्मान उनके लिए सर्वोपरि बन रहा है। देश का संविधान उन्हें यह हक देता है। काम के मोर्चे पर भी वे कोई साधारण ड्यूटी की अपेक्षा नहीं करती। अमृता रात साढे़ बारह बजे ड्यूटी पर तैनात थीं और तहलका पत्रकार अपने शहर से दूर गोवा में अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रही थी। कर्मठ आधी दुनिया अपनी पेशेगत ड्यूटीज को पूरी ईमानदारी से अंजाम दे रही हैं। अवमानना बर्दाश्त करते हुए काम करते जाना उन्हें नामंजूर है। स्त्री ही क्यों, ऐसा तो किसी पुरुष मातहत को भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए, बशर्ते कि वह सच्चाई और कर्त्तवय की दिशा में हो।

टिप्पणियाँ

  1. सलिल वर्मा जी के अनूठे अंदाज़ मे आज आप सब के लिए पेश है ब्लॉग बुलेटिन की ७०० वीं बुलेटिन ... तो पढ़िये और आनंद लीजिये |
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन 700 वीं ब्लॉग-बुलेटिन और रियलिटी शो का जादू मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. शाबास अमृता!

    पोस्ट लिखने के लिये धन्यवाद!

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