समंदर के निशां

impression of coconut tree
the only resort at shrivardhan beach


sand crab art at shrivardhan
मैं हैरान थी. मैंने समंदर के कई किनारे देखे थे लेकिन ऊंचे हरे नारियल के पेड़ों का ऐसा शानदार स्नेप कभी रेत पर नहीं देखा था.  कुदरत ने मानों अपनी ही तस्वीर खींच कर रेत पर उतार दी  थी. चित्रकार का नाम नहीं जानना  चाहेंगे आप ? ये मास्टर  केकड़ा थे जो क्षणों में उस नन्हें छेद में घुस जाते थे जो  कभी हमें किसी फूल का केंन्द्र लगता तो कभी वह  बिंदु जहाँ से नारियल का झुण्ड निकलता है .

नया साल आप सबको बहुत-बहुत मुबारक हो। ग्यारह के आधार पर खड़ा बारह आपके लिए खूब सारी खुशियां लेकर आए। ग्यारह और बारह के मिलन पर जो कुछ भी मानस पर दर्ज हुआ वही साझा करने का मन है। मुंबई के बोरिवली स्टेशन के बाहर लगा बाजार। इस स्ट्रीट मार्केट का स्ट्रीट फूड बहुत ही जायकेदार होता है। दाबेली, पाव के भीतर चटनियां और उबली मूंगफली की फिलिंग यानी भरावन वाली यह डिश बहुत ही मजेदार होती है। वड़ा पाव और पानीपूरी तो खाने से पहले ही मुंह में पानी भर देते हैं। मसाला डोसा में जब
चुकंदर,गाजर और पत्ता गोभी के लच्छे पड़ते हैं तो वह स्वाद के साथ पौष्टिक
भी हो जाता है। खैर, छोटी-सी दुकान पर बड़े ही आदर से डोसा परोसा
गया। अभी बच्चे ने एक कौर ही लिया था कि थाली सरक कर जमीन चाटने
लगी। माता-पिता ने हल्की-सी फटकार बच्चे को लगाते हुए दूसरा डोसा ऑर्डर कर दिया। ज्यों ही इस दूसरे डोसे के भुगतान के लिए हाथ बढ़ाया दुकानदार ने पैसे लेने से इंकार कर दिया। 'नहीं साहब हम गिरे हुए
डोसे के पैसे नहीं लेते।' आप आराम से बच्चे को खाने दीजिए।आपका तो
नुकसान हुआ है आप पैसे लीजिए। 'नहीं-नहीं मैं किसी से भी पैसे नहीं
लेता,'  उसने बड़ी विनयशीलता से हाथ जोड़ दिए। माता-पिता नाकाम रहे और डोसे वाला कामयाब। हैरानी हुई कि पैसे की बीन पर नाच रहे इस दौर में कोई उसूलों का झंडा लिए भी चलता है। ना मतलब ना। आगे चले ही थे कि एक स्ट्रीट शॉप पर चश्मे का लेंस गिर गया। चश्मा उतारकर भीतर रखा ही था कि...'अरे भाई बैठा है न आपका अभी ढूंढ देता हूं । दुकान को उलटपलट कर लैंस ढूंढ दिया गया। 'लाओ मैं इसे लगा कर देता हूं।' जाने यह मुंबई की हल्की सर्दी का असर था या भारत की आर्थिक राजधानी में विकसित होता हुआ सद्भाव, भीतर तक अभिभूत कर गया। 

मुंबई की माचिसनुमा इमारतों कोचीरते हुए नवी मुंबई के भव्य और खूबसूरत स्टेशनों को परास्त करतेहुए समंदर का एक किनारा हमारा लक्ष्य था। गोआ रोड पर रायगढ़ जिले के श्रीवर्धन कस्बे का बीच। पहाड़ों के घुमावों को नापतेहुए एक बार तो यूं लगा कि कोई झील सामने आएगी, लेकिन वह था रेत को चूमता समंदर । शांत समंदर में जब सूर्य पतली रेखा में तब्दील होकर विदा होता है तो लगता है कि कुदरत कितनी खूबसूरत है और इनसान कितना खुशनसीब, जो इस नजारे को निहार सकता है। सांझ, रात, सुबह यह समंदर नयी ही कथा सुनाता है. नए नज़ारे गढ़ता हैये केकड़े महाशय इसी किनारे के हमसफ़र थे शाम जब समंदर की  लहरें किनारों का साथ छोड़ने लगती  तब  ये ही इसका साथ देते , दूर-दूर तक यही नज़ारा. अद्वितीय, अनुपम, सुन्दर
बहरहाल, मुंबई से १८० किलोमीटर दूर  श्रीवर्धन एक छोटा-सा कस्बा है।  किनारे के बेहद करीब इस  बस्ती की ताकत ही समंदर है । उभरता हुए पर्यटन स्थल है। वहां के बाशिंदों ने अपने घरों को ही मुसाफिरखानों में तब्दील  कर दिया है। स्त्रियां नौ गज़ की धोतीनुमा साड़ी पहनती हैं और बालों में वैणी यानी गजरा लगाती हैं। इन दिनों शेवंती यानी गुलदाऊदी  की  और आम दिनों में मोगरे की .
अपने घर के  छोटे से  हिस्से के दो कमरों को सैलानियों को देनेवाली आजी (दादी) ने उसका नाम हेल्प सेंटर रखा है।  आजी  बताती हैं , अब तो साल भर टूरिस्ट आते हैं। आजी हिंदी में एक शब्द  भी नहीं बोल सकती। मराठी और कोंकणी में ही बात करती हैं। सुबह पांच बजे से उनका दिन शुरू हो जाता है। दोनों कमरों की सफाई वे ही करती हैं। नहाने के लिए पानी चूल्हे पर गरम कर देती हैं। बेटा चाय बना देता है। बाजू में स्कूल है। ढाई सौ बच्चों का खाना अकेले आजी ही बनाती हैं। बहत्तर  बरस की उम्र में इतना काम करने वाली आजी को जब आप कुछ अतिरिक्त  पैसे देना चाहते हैं तो वे इंकार कर देती है। आजी के घर का पिछला हिस्सा नारियल के पेड़ों से भरा है तो अगले हिस्से में सड़क के पार सुपारी संशोधन केंद्र है। दिसंबर के अंत में सभी ऊंचे पेड़ हरी सुपारी से लदे हैं। आजी के घर से समंदर पांच मिनट के पैदल फासले पर है। वेज नॉनवेज में फर्क करने वालों को वहां खाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि , दोनों एक साथ पकते हैं। मछली झींगे तो लगभग हर जगह। नाश्ते के लिए घरों के बाहर ही छोटे-छोटे बोर्ड लगे हैं। पोहा, साबूदाना, उपमा और फिश के। समंदर के बेहद करीब श्रीवर्धन अभी व्यवसायिक हथकंडों से दूर है। शायद आम भारतीय बहुत लालची है भी नहीं। वह संतोषी है।उसे किसी kbc में जाकर करोड़पति बनने का लालच भी नहीं एक खास समूह जरूर बदल गया है, जिसकी टोपी और धोती उतर गई है। महाराष्ट्र के नेता अब जींस, टी-शर्ट में नजर आने लगे हैं। कुरतापायजामा भी आउटडेटेड हो गया है।
श्रीवर्धन के पास जो भी है अपनी कुव्वत है। सरकारी प्रयास सिफर हैं। बीच पर एक रिसोर्ट भी निजी प्रयास का ही नतीजा है, जो आने वाले सैलानियों को खुश रखते हुए इस समंदर की खासियत में डुबो देना चाहता है। दो सालों के इस मिलन की अवधि में यही पाया कि भारत और भारतवासी बहुत
सुंदर हैं, भीतर से भी। सकारात्मक  ऊर्जा से भरपूर।

टिप्पणियाँ

  1. समंदर की ताकत अथाह है, गोवा जैसी न जाने कितनी अर्थ व्यवस्थायें खड़ी हो सकती हैं।

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  2. बेहद सार्थक व सटीक प्रस्‍तुति ।

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  3. अच्छा लगा आपका अनुभव। हैवानियत कितनी भी चढे, इंसानियत कभी खत्म नहीं होगी!

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  4. समंदर से दिल...। उत्तर भारत में खासकर दिल्ली में तो ऐसे क्षण कम ही आते हैं। पहाड़ भी पहले ऐसे ही थे जब तक कि वहां लालच का डेरा नहीं डाल दिया हम लोगों ने। केकड़े महाराज को बधाई और आपको भी उस चित्रकारी की जो उसे इतने पाठकों तक पहुंचाया।
    श्रीवर्द्धन गांव के प्रति दिलचस्पी बढ़ गई है।

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  5. तस्वीरों की कमी खली लेकिन अच्छा तजुर्बा लिया है आपने. श्रीवर्धन के बारे में सुना है पहले भी. मुंबई से किसी वीकेंड पर पहुंचा जा सकता है. आजी से मिलना ज़रूर होगा. शुक्रिया.

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  7. समंदर के निशां आलेख पसंद आया. खास तौर पर आजी का घर , नारियल के पेड़ , उजाले की पतली लकीर सा डूबता सूरज , उबली हुई मूंगफली , गिरे डोसे के पैसे ,बाकी भी सब कुछ ......! बधाई , दिल को छू लेने वाली भाषा लिखने के लिए .....!

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  8. sahi kaha praveenji
    aabhaar shivamji
    rashmiji aur sada aapka shukriya
    anuraagji insaniyat khatm nahin hoga
    dheeresh ji dhnyawaad kekde mahashay ki aur se
    madhvi ji tasveeren bhi jald hi..aaji se miliyega
    prakashji bahut shukriya

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