सुरा सुन्दरी के बाद


बधाई हो। गांधी जी का सामान भारत आने वाला है। उनकी चमडे़ की चप्पल, चश्मा और घड़ी अब हमारी हुई। विजय माल्या ने इन्हें अठारह लाख डालर की बोली लगाकर खरीदा है। भले ही भारत सरकार से सांठ गांठ कर उन्होंने बोली लगाई हो लेकिन इस खबर ने सुकून दिया है।हवाई यात्राओं , सुरा और सुंदरियों के (किंगफिशर का बहुचर्चित कैलेंडर)अलावा अब कुछ और भी उनमें नजर आएगा। यह और बात है कि ये स्मृति चिन्ह ससम्मान हमें मिलने की बजाए नीलामी के जरिए मिले। यदि नीलामी हमारे हक में ना हुई होती तो.. ? बहरहाल, मेरे जैसे कई भारतीय खुद को मुक्त महसूस कर रहे हैं। भीतर ही भीतर कुछ बेहतर लग रहा है। नीलामी के पहले तक अजीब सी बैचेनी थी।

टिप्पणियाँ

  1. हमें तो कभी कोई हैरानी न हुई न रही।

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  2. महामंदी के बाहुपाश में जकड़ी इस दुनिया के कारोबारी घरानों में पहली स्वाभाविक चिंता अपना मार्केट केप बचाने की है विजय माल्या को हाल ही में सामूहिक रूप के विमान कंपनियों द्वारा भाड़ा बढाये जाने पर सरकार ने लताड़ा भी था लेकिन चाहे टीपू सुलतान की तलवार हो या फिर हमारे राष्ट्रपिता की निजी वस्तुएं श्री माल्या ने अपने विलासी जीवन की आवश्यक सामग्री के विपरीत इन राष्ट्रीय धरोहरों के लिए अपनी ऊर्जा और धन का सदुपयोग किया है, कृपया आप उन्हें माफ़ करते हुए बाक़ी बड़े घरानों को कुछ लानतें भेजे. [हालांकि आपने अपनी पोस्ट में उन्हें सम्मानित ही किया है ]

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  3. मुझे अभी भी अजीब ही महसूस हो रहा है...अभी अपने कार्टूनिस्ट बता रहे थे कि एक क्रांतिकारी कार्टून बनाने की सूझी है...दो शराबी बात कर रहे हैं कि अगर हम जैसे लोग शराब पी-पीकर माल्या जी की कमाई न करवाते तो बापू का सामान भारत कैसे आता? ये बात अलग है कि गाँधी जी की चिंतित है कि शराब की खिलाफत करके इनका धंधा मंदा क्यूँ करते रहे...

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  4. बापू के विचारों को तो हम पहले ही बेच-खा चुके हैं। अब चश्मा, घड़ी, चप्पल, कटोरी को पाकर ही खुश हो लें। बाबा नागार्जुन की पंक्तियाँ अनायास ही याद आ रही हैं...
    बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
    सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
    सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के !
    ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के !
    जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के !
    लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के !
    बापू के बंदरों की जय हो।

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  5. अन्शुमालीजी किशोरजी दिलीप अरुणजी आपका शुक्रिया. अरुणजी इतनी निराशा क्यों? बापू के आदर्श आम आदमी ने नहीं बेचें हैं.उसे इन चीज़ों से आज भी बापू के संघर्ष की खुशबू आती है. निःसंदेह वह किसी विदेशी को नहीं आएगी . मुझे लगता है बापू के विचारों को नए सिरे से नई पीढी में रोपने की ज़र्रोरत है क्योंकि जब तक दुनिया है तब तक इन आदर्शों का मूल्य है .वे खारिज नहीं हो सकते. आम आदमी तो गांधीगिरी पर आज भी फ़िदा है .सादर

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  6. jitna ho halla soniya- rahul gandhi ke khilaaf ek shabd bol dene par ye congressi machate hen..ve es neelaami ke douraan kahan the../
    koi dharna pradarshan..jyada dekhne ko mila nahi.?????

    yadi aam
    aadmi gandhi ji ko jara bhi apne dil men rakhta hai..to es party ke parivaarvaad ko vote kyon deta hai.

    gandhiji ne to apne parivaar ko kabhi es tarah aage nahi badaya jis besharmi se congress aisa kar rahi hai.

    esliye ye kahna band karo ki
    aam aadmi gandhi ko bahut poojta hai.

    yadi bonikapoor ne film na banayee hoti ( GANDHI: MY FATHER} to adhikaans aam aadmiyon ko to yahi pata na chalpata ki gandhi ke bade putra ka naam kya tha.



    GANDHI BHAKTON KO YADI BURA LAGE TO MAAF KAREN. maine vahi likha hai jo main dekh rha hun.

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  7. गांधी के प्रिय-पात्रों ने मुफ्त में मिले यह स्मृतिचिन्ह बेच डाले और उनमें से कई की सन्ततियां पहले इस नीलामी पर और अब विजय माल्या द्वारा खरीदे जाने पर काफी हाय-तौबा मचा रही हैं.

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