एक समय था जब राजा-महाराजा प्रजा का हाल जानने के लिए भेस बदलकर उनके बीच जाया करते थे क्योंकि वे जानना चाहते थे कि उनके ख़िलाफ़ कोई नाराज़गी या उन्माद तो नहीं है। जो काम वे कर रहे हैं उन्हें जनता पसंद कर रही है या हाहाकार मचा है। उत्तर रामायण में तो वर्णन है कि भगवान राम को उनके गुप्तचरों ने ही सूचना दी थी कि प्रजा, माता सीता के बारे में अलग सोच रही है। इसके बाद जो हुआ वह आज तक बहस में है कि राम को सीता का त्याग करना चाहिए था या नहीं। अपनी सबसे प्रिय सीता का जिन्हें पहली बार पुष्प वाटिका में देख उन्हें खयाल आया था कि वे इतनी सुन्दर हैं कि सुंदरता भी उनसे ही सुन्दर होती है, फिर भी उन्होंने प्रजा के लिए यह कठोर निर्णय लिया। सीता के वन-गमन का हृदय विदारक निर्णय। राम वे राजा थे जो प्रजा की सोच पर खरा उतरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अपने सबसे प्रिय का त्याग भी कर सकते थे। कालांतर में बादशाह अकबर के नाम भी किस्से दर्ज़ हैं कि वे रूप बदल कर जनता के बीच दाखिल हो जाते थे। दरअसल ये उस दौर के तरीके थे जब राजा जनप्रिय बने रहने के लिए निज प्रयास करते थे। एक आज का दौर है जहां निजता हरने का कारो
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जवाब देंहटाएंwww.ni-shabd.blogspot.com
see the world of silence.
tarunssssssssssss
blog par aane ke liye
जवाब देंहटाएंbadhai...
कभी- कभार क्यों...??
जवाब देंहटाएंkyonki roz likhna mushkil he .rekhon ka khel nahin. sorry vaise agya ho to koi sateek kartoon lena chahoongee
जवाब देंहटाएंकिताब में पढ़ लिया
जवाब देंहटाएंऔर तुमने मान भी लिया
कि मीडिया सच का आईना है !
तुमने जिल्द पर शायद देखा नहीं
वो किताब तो पिछली सदी में लिखी गई थी
तब से अब तक में 'सच' न जाने कितनी पलटियां ले चुका
और तुम अभी भी यही मान रही हो
कि मीडिया सच को दिखाता है !
सुनो
नई परिभाषा ये है कि
मीडिया सच पर नहीं
टीआरपी पर टिका है
पर एक सच और है
मीडिया मजबूर है
और जो खुद मजबूर है
वो तुम्हें रास्ता क्या-कैसे दिखाए
हां, तुम ठीक कहती हो
हम-तुम दोनों मिलकर एक नए मीडिया की तलाश करते हैं
बोलो, मंगल पर चलें या प्लूटो पर
अब यह तो तुम ही तय करो
लेकिन सुनो
वक्त गुजारने के लिए
ये सपना अच्छा है न! (साभार: वर्तिका नंदा के ब्लॉग से )